________________
-
जैन दर्शन की संज्ञा की अवधारणा का समीक्षात्मक अध्ययन
अध्याय - 11 सुख संजा और दुःख संज्ञा 1. सुख और दुःख का अर्थ तथा उनकी सापेक्षता 2. सुख व्यवहार के प्रेरक के रूप में और दुःख व्यवहार के निवर्तक के . रूप में 3. सुखवाद की अवधारणा और उसकी समीक्षा 4. सुख और आनंद का अन्तर ..
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org