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जाता है। इच्छाओं को आकाश के समान अनन्त कहा गया है। जितनी इच्छाओं की पूर्ति होंगी, नई इच्छाएं द्विगुणित एवं त्रिगुणित रूप से बढ़ती जाएंगी और व्यक्ति अधिक दुःखी होता जाएगा।
प्रसंगानुसार, एक राजा बहुत बीमार हो गया। कुशल वैद्यों के इलाज से भी ठीक नहीं हुआ। अन्त में, एक वैद्य ने इलाज बताया कि ऐसे आदमी की कमीज लाओ, जो अत्यन्त खुश हो। परंतु दूर-दूर तक दूत व संदेशवाहक भेजे गए, पर सफलता नहीं मिली। एक दिन एक व्यक्ति हंसी से लोट-पोट होते मिला, तो राजा के सैनिक उसे पकड़कर राजा के पास ले गए। राजा ने जब उसकी कमीज मांगी तो उसने जवाब दिया- “यदि मेरे पास कमीज या कोई भी वस्तु होती, तो क्या मैं कभी सुखी हो सकता था ? राजन्! मेरे पास कुछ नहीं है, और न पाने की इच्छा है, इसीलिए मैं सुखी व प्रसन्न हूँ।"
उसकी खुशी का राज यही था कि उसके पास कोई वस्तु नहीं थी, अर्थात् वह निष्काम और अपरिग्रही था। वास्तविक दुःख या रोग कामना और वस्तुओं की चाह का है। इनसे ही व्यक्ति दुःखी होता है। वस्तु, व्यक्ति और कीर्ति की कामना के समाप्त होते ही आदमी सुखी हो जाता है।
सुख और दुःख का अर्थ तथा उनकी सापेक्षता -
सुख शब्द 'सुख्+अच्' धातु से निष्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है प्रसन्न, आनन्दित, खुश आदि।12 अंग्रेजी में इसे प्लेज़र {Pleasure} कहते हैं। जिसका अर्थ विषय सुख, आनन्द, संतोष आदि है।
. दुःख शब्द मूलतः संस्कृत भाषा का दुःखं शब्द है। यह शब्द विशेषण के रूप में प्रयुक्त हुआ है। 'दुष्टानि खानि यस्मिन या दुष्टं खनति यः स दुःखं' जिसका अर्थ
" इच्छा हु आगाससमा अणंतिया। - उत्तराध्ययनसूत्र 9/48 12 संस्कृत-हिन्दी कोश, भारतीय विद्या प्रकाशन, दिल्ली, पृ. 1114 13 Bhargava's Standard Illustrated Dictionary of the English Language - P.N. 629
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