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भी न लो । " कोई भी चीज आज्ञा लेकर ग्रहण करना चाहिए। 70 वैदिक-धर्म में भी चोरी का स्पष्ट निषेध है ।" किसी की भी कोई चीज ग्रहण न करें। महात्मा ईसा ने भी कहा - "तुम्हें चोरी नहीं करना चाहिए । 2
चोरी एक लोभजन्य वासना है, जो एक बार लग जाने पर छूटती नहीं है, जिससे मानव के दया, अहिंसा, क्षमा, सत्त्व आदि सद्गुण नष्ट हो जाते हैं । चोरी से प्राप्त धन, जीवन में शान्ति नहीं देता ।
वस्तुतः, लोभसंज्ञा के दुष्परिणाम और प्रभाव से संसार का कोई प्राणी अपरिचित अथवा अप्रभावित नहीं है; किन्तु उसे दुःख और अनीति का कारण मानने वाले लोग विरल हैं। इस लोभवृत्ति को समझकर इसका शमन करें, इसकी चर्चा हम आगे करेंगे।
लोभ पर विजय कैसे ?
उत्तराध्ययनसूत्र में पूछा गया है - "लोभ के विजय से जीव को कौन-सा लाभ होता है ?" प्रभु ने उत्तर दिया – “लोभ विजय से संतोष उत्पन्न होता है। लोभवेदनीयकर्म का बंधन नहीं होता तथा पूर्वबद्ध कर्म की निर्जरा होती है। 73
योगशास्त्र में कहा है - " लोभरूपी समुद्र को पार करना अत्यन्त कठिन है । उसके बढ़ते हुए ज्वार को रोकना दुष्कर है, अतः महाबुद्धिमान पुरुष को चाहिए कि संतोषरूपी बाँध बांधकर उसे आगे बढ़ने से रोक लें। "74
69 दन्तसोहणमाइस्स अदत्तस्स विवज्जणं
अणुन्नविय गेहियव्व ।
7" कस्यचित् किमपि नो हरणीयम् ।
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74 लोभ सागर मुवेलमतिवेलं महामतिः । संतोषसेतुबन्धेन, प्रसरन्तं निवारयेत् ।।
उत्तराध्ययनसूत्र 19 / 28
प्रश्नव्याकरणसूत्र 2/3
12 Thous shall not steal
73 लोभविजयेणं भंते! जीवे किं जणयइ ?
लोभविजएणं संतोसिभावं जणयइ, लोभवेयणिज्जं कम्मं ने बन्धइ, पुव्वबद्धं च कम्मं निज्जरे...
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यजुर्वेद 36/22
Bible
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योगशास्त्र 4 / 22
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{........ | उत्तराध्ययन 29/70
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