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14. जीविताशा - जीवित रहने की इच्छा। जीव की सबसे प्रथम इच्छा जिजीविषा (जीने की प्रबल इच्छा) है और वह अन्त तक रहती है। आचारांग में भी कहा है -'सव्वे पाणा पिआउआ', सभी प्राणियों को अपनी जिंदगी प्यारी है और जीवित रहने की इच्छा ही जीविताशा है। 15. मरणाशा - मरने की इच्छा। दुःख, निराशा, मान सम्मान में हानि के भय से, व्यापार में नुकसान या किसी के वियोग के कारण मृत्यु की इच्छा ही मरणाशा है। 16. नंदिराग – प्राप्त समृद्धि में होने वाली प्रसन्नता, रंजनात्मक-मनोवृत्ति नंदिराग है। व्यक्ति की प्रसन्नता उसकी सम्पत्ति और धनादि को देखकर और बढ़ती है और उन वस्तुओं को देखने से मिलने वाली खुशी ही नंदिराग है।"
कसायपाहुड में लोभ के बीस रूपों की व्याख्या की गई है38 – काम, राग, निदान, छन्द, स्तव, प्रेय, दोष, स्नेह, अनुराग, आशा, इच्छा, मूर्छा, गृद्धि, साशता, प्रार्थना, लालसा, अविरति, तृष्णा, विद्या, जिह्वा।
समवायांग एवं भगवतीसूत्र में दिए लोभ के पर्याय एवं कसायपाहुड में दिए पर्यायों में तीन-चार पर्यायों में साम्यता है, अन्य भिन्न हैं।
कसायपाहुड में उल्लेखित पर्यायों की निम्न व्याख्या है - 1. काम - स्त्री, पुरुष आदि की अभिलाषा। 2. राग - विषयासक्ति। 3. निदान – जन्मजन्मांतर संबंधी संकल्प। 4. छन्द - मनोनुकूल वेशभूषा में विचरना। 5. स्तव – विविध विषयों की अभिलाषारूप चिन्तन।
36 आचारांगसूत्र 1/2/3 " लोभे त्ति सामान्यं इच्छा ............. नंदिराग। - भगवतीवृत्ति 12/106 38 कामो राग णिदाणो ...........
- कषायचूर्णि, अ.9, गा. 89
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