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4. कांक्षा - अप्राप्त पदार्थ की आशंसा, जो नहीं है, भविष्य में उसे पाने की इच्छा कांक्षा है। कांक्षा और इच्छा में सूक्ष्म अन्तर यही है कि कांक्षा want है, तो इच्छा will है। सूक्ष्म दृष्टि से कहें, तो आकांक्षा इच्छा की जनक है। 5. गृद्धि – प्राप्त पदार्थ में होने वाली आसक्ति, प्राप्त इष्ट वस्तुओं में अभिरक्षण की प्रवृत्ति गृद्धि कहलाती है। दूसरे शब्दों में कहें, तो अपनी वस्तु में आसक्ति रखना गृद्धि है। 6. तृष्णा – प्राप्त पदार्थ का व्यय न हो, -इस प्रकार की इच्छा तृष्णा है। जो वस्तु अपने अधिकार में है, उस वस्तु के प्रति व्यय न करने की इच्छा तृष्णा है। 7. भिध्या – विषयों के प्रति होने वाली सघन एकाग्रता अर्थात इष्ट वस्तु पर अपनी दृष्टि सदा जमाए रखना। वह कहीं इधर-उधर न चली जाए और कोई ले न जाए, इस प्रकार की इच्छा ही मिध्या है।
8. अभिध्या - विषयों के प्रति होने वाली विरल एकाग्रता, चंचलता या निश्चय से डिग जाना।
9. आशंसना - इच्छित वस्तु की प्राप्ति के लिए दिया जाने वाला आशीर्वाद । 10. प्रार्थना - प्रार्थना करना, याचना करना, मांगना आदि, अर्थात् सम्पत्ति, धन, इच्छित वस्तु की याचना करना प्रार्थना है। 11. लालपनता - इष्ट वस्तु को प्राप्त करने के लिए बार-बार प्रार्थना करना और जब तक वस्तु प्राप्त न हो जाए, तब तक प्रार्थना करते रहना। 12. कामाशा - काम की इच्छा, शब्द, रूप आदि को पाने की इच्छा कामाशा है। 13. भोगाशा – गंध, रस आदि पदार्थों को भोगने की कामना भोगाशा है। मधुर स्वर, सुंदर रूप, षट्रस भोजन, सुरभी गंध और मुलायम वस्त्रादि को भोगने की इच्छा भोगाशा होती है।
35 भविष्यत्कालोपादानविषयाकांक्षा ......
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