________________
364
ज्ञानार्णव के अनुसार “यह माया अविद्या की भूमि, अपयश का घर, पापकर्म का विशाल गर्त तथा मोक्षमार्ग की अवरोधक है।2
माया के दुष्परिणाम निम्न हैं :1. माया मैत्री की नाशक -
दशवैकालिकसूत्र में कहा है – माया से मित्रता तथा अच्छे सम्बन्धों का नाश होता है, 3 क्योंकि मित्रता का आधार ही विश्वास है और यदि कोई अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए विश्वासघात करता है, तो वह हमेशा के लिए मित्रों को खो देता है। कहते हैं – 'काष्ठ की हांडी दो बार नहीं चढाई जाती। काष्ठ की हंडिया यदि दाल या भात रांधने के लिए चूल्हे पर चढ़ा दी जाए, तो वह पहली बार में ही जलकर राख बन जाएगी, इसलिए उसे दूसरी बार चढ़ाने का सवाल ही पैदा नहीं होता। जो मित्र एक बार ठगा जाता है, वह सावधान हो जाता है, दूसरी बार वह चक्कर में नहीं आता है। 2. माया स्त्रीवेद का बन्ध कराती है -
धर्मक्रिया में थोड़ी भी माया करने से स्त्रीवेद का बन्ध हो जाता है, जैसे -माया के सेवन से महाबल मुनि को स्त्रीरूप में मल्ली बनना पड़ा। 3. तिर्यञ्च-गति का बन्ध –
स्थानांगसूत्र में तिर्यंचायुबन्ध के चार कारणों में माया और गूढ माया को प्रमुख कारण बताया गया है।
32 ज्ञानार्णव, सर्ग-19 33 दशवैकालिकसूत्र, 8/38 34 काष्ठपांत्र्यामेकदैव, पदार्थः खलु रध्यते।। - नीतिवाक्यामृत 35 1) कल्पसूत्र – मल्लिनाथ चरित्र। 2) दंभ लेशोऽपि मल्लयादेः स्त्री त्वानर्थनिवंधनम्,
अतस्तत्परिहाराय यतित्व्यं महात्मना। -अध्यात्मसार, गाथा 3/22 36 स्थानांगसूत्र 4, उ.4, सू 629
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org