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किए जाते हैं और यह मान लिया जाता है कि धनार्जन में नैतिकता आवश्यक नहीं
2. भविष्य की हानि का विचार न होने से - झूठ, चोरी, ठगी आदि कुकृत्य मेरे समाज अथवा राज्य में उजागर न हो जाएं, इससे बचने के लिए व्यक्ति द्वारा मायापूर्वक व्यवहार किया जाता है और पुलिस एवं राज्यों को धोखा देकर वह अपना स्वार्थ सिद्ध करता है।
___3. मान के लिए माया – व्यक्ति अपनी मान-प्रतिष्ठा, अहंकारादि के पोषण के लिए एवं अपने दुर्गुणों को छिपाकर गुणी कहलाने के लिए भी माया का प्रयोग करता
4. पूर्व संस्कारों से – कई जन्तु, जैसे -छिपकली, बिल्ली, चीता, बगुला तथा कई मानव पूर्वजन्म के संस्कारों के कारण जन्म एवं स्वभाव से ही कपटी होते हैं।
___5. दूसरों को गुमराह करने के लिए – अपनी स्थिति चाहे वह धन-संबंधी हो, स्वभाव-संबंधी, दुर्गुण-संबंधी अथवा ज्ञान-संबंधी, वह दूसरों को मालूम न पड़ जाए, इस कारण असली स्थिति को छिपाकर झूठा दिखावा किया जाता है।
वर्तमान समय में विज्ञापनों के द्वारा लोगों को सम्मोहित किया जाता है। वस्तु की गुणवत्ता का झूठा बखान कर जनता को ठगा जाता है। अंदर कुछ और बाहर कुछ' का प्रदर्शनादि सभी मायाचार को उत्पन्न करते हैं और भोली-भाली जनता को ठगते हैं।
आध्यात्मसार में यशोविजय जी कहते हैं29 -"रस के प्रति आसक्ति का त्याग करना सरल है, देह के आभूषण का भी सरलता से त्याग कर सकते हैं। कामभोगों का भी त्याग करना सरल है, किन्तु दंभ-सेवन (माया) अर्थात् जीवन में दोहरेपन का त्याग करना बहुत मुश्किल है।"
29 सुत्यजं रसलाम्पट्यं सुत्यजं देहभूषणम्।
सुत्यजा कामभोगाश्च दुस्त्यजं दंभसेवनम् ।। – अध्यात्मसार, अध्याय-3, गाथा-59
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