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16. परिकुंचनता/प्रतिकुंचनता – किसी के सहज उच्चारित शब्दों का खण्डन करना, विपरीत अर्थ लगाना, या अनर्थ करना। 17. सातियोग – उत्तम पदार्थ में हीन पदार्थ का संयोग करना, जिसे वर्तमान भाषा में मिलावट कहा जाता है।
___ कसायपाहुड में भी माया के ग्यारह पर्यायों में से कुछ समवायांग समान हैं एवं कुछ भिन्न हैं। भिन्न पर्यायवाची नाम निम्न हैं -
1. अनृजुता – वक्रतापूर्वक वचनों को कहना। 2. ग्रहण – अन्य के मनोनुकूल पदार्थों को स्वयं ग्रहण कर लेना। 3. मनोज्ञमार्गण - किसी के गुप्त अभिप्राय को जानने की चेष्टा करना। 4. कुहक - किसी की गुप्त बात को जानना। 5. छन्न - गुप्त प्रयोगों अथवा विश्वासघात करने का प्रयास करना।
माया के विभिन्न रूपों की चर्चा में यह स्पष्ट होता है कि जिसमें दूसरों को ठगने के लिए षड्यंत्र रचे जाते हैं। माया से जो जगत् को ठगता है, वास्तव में वह अपनी आत्मा को ही ठगता है। अपने पापकार्यों को छिपाने की वृत्तिवाला वह व्यक्ति बगुले के समान मायारूप पापकर्म करता है। जैसे बगुला मछली आदि को धोखा देने के लिए ध्यान-चेष्टा करता है, उसी तरह मायावी जगत् को ठगता है और वह अपनी माया को छिपाता फिरता है। जिस प्रकार ऊबड़-खाबड़ दीवार पर चित्र के विभिन्न रंग व चित्र ठीक प्रकार से नहीं उभरता, उसी प्रकार मायावी का किया गया धर्म-कार्य भी सफल नहीं हो पाता है।
कषायपाहुड, 9/88
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