________________
313
3. क्रोध व्यक्ति के शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक-शान्ति को भंग करता है -
तीव्र क्रोध स्वास्थ्य के लिए अहितकर है। क्रोध से यकृत, तिल्ली और गुर्दे विकृत होते हैं, रक्तचाप बढ़ता है, आँतों में घाव होते हैं, पाचक रस अल्पमात्रा में बनता है। अमेरिका की 'लाइफ मेग्जीन' में एक सचित्र लेख था कि हृदय विकार (हार्ट ट्रबल), पेट सम्बन्धी रोग (स्टमक ट्रबल), ब्लडप्रेशर, अल्सर आदि रोगों का कारण क्रोध या आवेश है।" तीव्र आवेश से हृदय, फेफड़े, मस्तिष्क, स्नायु आदि के कार्यों में तीव्रता आती है। रक्त मस्तिष्क में अधिक मात्रा में प्रवाहित हो जाता है, साथ ही खून में विकार उत्पन्न होने लगते हैं, इसलिए क्रोधित महिला कभी शिशु को स्तनपान न कराए। क्रोध के कारण नाड़ी फट जाने से कई बार मनुष्य की मृत्यु हो जाती है। क्रोध के कारण मानसिक-शान्ति का हृास होता है।
4. क्रोध से सम्यक्त्व-गुण का नाश -
शास्त्रकार कहते हैं कि एक ही क्षण का क्रोध करोड़ों वर्षों के संयम और तप की साधना को निष्फल बना देता है। कपास के गोदाम में आग की एक चिंगारी काफी है, वैसे ही वर्षों की साधना को जलाने के लिए क्रोध की एक चिंगारी काफी है। क्रोध का आवेश एक वर्ष से ज्यादा स्थित रहे, तो वह अनंतानुबंधी क्रोध बन जाता है और आत्मा को सम्यक्त्व-गुण से भ्रष्ट करता है। हजारों जन्मों की साधना के बाद जो गुण-संपदा मिलती है; वह क्रोध के एक तूफान में पूरी नष्ट हो जाती है।
क्रोधवश लब्धाकारी कुरुट-उत्कुरुट मुनि सातवीं नरक में गए। साधु भी चंडकौशिक सर्प बने।
76 शारीरिक मनोविज्ञान, - ओझा एवं भार्गव, पृ. 214 77 सामान्य मनोविज्ञान की रूपरेखा - पृ. 420-421 78 प्रथम कर्मग्रंथ, गाथा, 18 " आचारांग / 1/3/2
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org