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4. क्रोध में सामने वाला अगर अग्नि हो रहा हो, तो आप पानी बन जाएं।
उत्तराध्ययन में कहा है - अपने-आप पर भी कभी क्रोध मत करो।92
क्रोध-प्रसंग मिलने पर क्रोध-विजय, क्रोध-शमन, क्रोध-नियंत्रण और क्रोध विफल करने की दिशा में उपर्युक्त सूत्रों में से कोई भी सूत्र का सही समय पर सही उपयोग किया जाए तो सफलता अवश्य मिलेगी, क्योंकि क्रोध को उत्पन्न करना जितना सरल है, उसे समेटना उतना ही कठिन है। हर पाप का, हर अपराध का श्री गणेश क्रोध से ही होता है, क्रोध की खुराक विवेक है। विवेक के अभाव में ही क्रोध अपना साम्राज्य स्थापित करता है। यदि क्रोध पर क्षमा का अंकुश और जाग्रति की लगाम रहे, तो क्रोध कभी भी अहितकर नहीं होगा।
आधुनिक मनोविज्ञान में क्रोध-संवेग {Emotion} और आक्रामकता की मूलवृत्ति - ___आधुनिक मनोविज्ञान में क्रोध को एक संवेग और आक्रामकता को एक मूलप्रवृत्ति माना गया है। वस्तुतः, क्रोध का जन्म तब होता है, जब चार मूलभूत संज्ञाओं, अर्थात् आहार, भय, मैथुन और परिग्रह में किसी प्रकार की बाधा उपस्थित होती है। क्रोध की उत्पत्ति के साथ ही व्यक्ति में आक्रामकता की मूलवृत्ति अभिव्यक्त होती है। प्राथमिक स्थिति में आक्रामकता {Aggression} संरक्षणात्मक होती है, लेकिन कालान्तर में वह एक तरह से व्यक्ति के स्वभाव का अंग बन जाती है। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से आक्रामकता क्रोध की अभिव्यक्ति का ही एक रूप है।
क्रोध में व्यक्ति स्वतः तनावग्रस्त बनता है और उसमें दैहिक और मानसिक परिवर्तन घटित होते हैं। इसमें पहले व्यक्ति सुरक्षात्मक उपाय को खोजता है, किन्तु शीघ्र ही वह आक्रामक-वृत्ति अपना लेता है। जब किसी प्राणी को यह ज्ञात होता है कि कोई दूसरा व्यक्ति या प्राणी उसके अस्तित्व के लिए खतरा उपस्थित कर रहा है, तो वह पहले अपनी सुरक्षा का प्रयत्न करता है और फिर उस सुरक्षा के लिए
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