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4. स्तम्भ - नम्रता का अभाव, न झुकने की मनोवृत्ति स्तम्भ है। कषायपाहुड में अनर्गल या वचनालाप को स्तम्भ कहा गया है। 5. गर्व – शक्ति का अहंकार या जाति आदि का अहंकार करना गर्व है। 6. आत्मोत्कर्ष – अपनी विद्वत्ता, विभूति या ख्याति की उच्चता का भाव आत्मोत्कर्ष
है।
7. परपरिवाद – अहंकार की वह मनोदशा, जिसके वशीभूत मनुष्य दूसरों की हीनता प्रदर्शित करता है। 8. उत्कर्ष – उत्कृष्टता की भावना, अथवा अपनी ऋद्धि का प्रदर्शन उत्कर्ष मान
9. अपकर्ष – अभिमानपूर्वक हिंसक प्रवृत्ति में संलग्न होना अथवा अन्य किसी को उस क्रिया में प्रवृत्त करना अपकर्ष है।
10. उन्नत – मानवश नीति का त्याग करके अनीति करना।
11. उन्नाम – वन्दनीय को वन्दन न करना, नमस्कार करने वाले को प्रति-नमस्कार नहीं करना। 12. दुर्नाम – दोषपूर्ण नमन, वंदनीय को अभिमान, अनिच्छा एवं अविधि से वन्दन
करना।
कषायपाहुडसूत्र में मान के दस पर्याय उल्लेखित हैं - मान, मद, दर्प, स्तम्भ, उत्कर्ष, प्रकर्ष, समुत्कर्ष, आत्मोत्कर्ष, परिभव, उत्सिक्त। इन दस पर्यायों में चार पर्याय 'भगवतीसूत्र' में निर्दिष्ट पर्यायों से भिन्न हैं। प्रकर्ष – अपनी विद्वत्ता, विभूति अथवा ख्याति को प्रकट करना।
22 स्तंभनात् स्तंभः अवनतेरभावात्। , तत्त्वार्थसूत्राभिगम, भाष्यवृत्ति 8/10 की टीका 33 गर्यो जात्यादिः । - वही 34 सूत्रकृतांग, 1/2/51 35 कषाय चूर्णि/ अ 9/गाथा 87 का हिन्दी अनुवाद
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