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प्रकार नेतर की डंडी आसानी से मुड जाती है उसी प्रकार संज्वलन-मान वाला व्यक्ति भी आसानी से समझ जाता है और मद का त्याग कर देता है।
मानोत्पत्ति के कारण
स्थानांगसूत्र और प्रज्ञापनासूत्र में मानोत्पत्ति के चार कारण बताए गए हैं1. क्षेत्र के कारण – खेत, भूमि, आदि अधिक होने पर मान करना।
2. वास्तु के कारण – घर, दुकान, फर्नीचर आदि के कारण मान करना। 3. शरीर के कारण – शरीर की सुन्दरता, लावण्य, श्रेष्ठ स्वस्थ शरीर के प्राप्त होने पर मान करना।
4. उपधि के कारण - सामान्य साधन-सामग्री, कार, मोटर, वाहन, सुविधा आदि अनुकूल होने पर मान करना।
___ स्थानांगसूत्र में मान-उत्पत्ति के आठ एवं दस स्थानों का भी उल्लेख है। निम्न दस कारणों से पुरुष अपने आपको 'मैं ही सबसे श्रेष्ठ हूँ' ऐसा मानकर अभिमान करता है। मद के आठ प्रकारों में जाति, कुल, बल आदि श्रेष्ठ होने पर वे मानोत्पत्ति का कारण बनते हैं।
1. मेरी जाति सर्वश्रेष्ठ है - इस प्रकार जाति के मद से। 2. मेरा कुल सबसे श्रेष्ठ है - इस प्रकार कुल के मद से।
3. मैं सबसे अधिक बलवान् हूँ - इस प्रकार बल के मद से।
4. मैं सबसे अधिक रूपवान् हूँ – इस प्रकार रूप के मद से।
5. मेरा तप सबसे उत्कृष्ट है - इस प्रकार तप के पद से।
38 चउहिं ठाणेहिं माणुप्पती सिता, तं जहा -खेत्तं, पडुच्चा, वत्थु पडुच्चा,
सरीरं पडुच्चा, उवहि पडुच्चा । एवं णेरइपाणं जाव वेमाणियाणं। - स्थानांगसूत्र 4/1/81 39 प्रज्ञापनासूत्र, पद 14, सूत्र 961 40 दसहिं ठाणेहिं, अहमंतीति थंभिज्जा तं जहा - जातिमएण, वा, कुलमएण .... में अंतियं हव्वमागच्छंति,
पुरिसधम्मातो. वा मे उत्तरिए, आहोधिए, णाणदंसणे समुप्पणें। - स्थानांगसूत्र, 10/12
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