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दूसरों पर आक्रामक हो जाता है। अतः क्रोध के संवेग और आक्रामकता की मूलवृत्ति में कहीं न कहीं एक सहसम्बन्ध रहा हुआ है।
. क्रोध मानसिक और दैहिक-असंतुलन को जन्म देता है और जिन्हें वह अपने हित-साधन में बाधक समझता है, उनके प्रति आक्रामक बन जाता है। क्रोध के दो पक्ष होते हैं - दैहिक और मानसिक । मानसिक स्तर पर व्यक्ति तनावग्रस्त होता है
और अपना मानसिक-संतुलन और विवेक-क्षमता खो बैठता है, तथा दैहिक-स्तर पर तात्कालिक-प्रक्रियाएं करने लगता है। मानसिक-स्तर पर उसकी विवेकशीलता और विचार-क्षमता नष्ट हो जाती है।
__बच्चों पर किए गए अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ है कि जब उन्हें लक्ष्य वस्तु {Goal object} तक पहुंचने से रोक दिया जाता है, तो उनमें एक तरह की कुण्ठा {Frustration} उत्पन्न होती है और उस कुण्ठा से फिर उनमें आक्रामक व्यवहार {Aggressive behaviour} का जन्म होता है, और वे लक्ष्य वस्तु की ओर आक्रामकता दिखलाने लगते हैं। गीता में भी कहा गया है -“वस्तु के प्रति आकर्षण से कामनाएं उत्पन्न होती हैं और कामनाओं की पूर्ति में बाधा उपस्थित होने पर स्वतः ही क्रोध का भाव आ जाता है।93
दैहिक-स्तर पर विचार करें, तो क्रोध में रक्तचाप बढ़ जाता है, होंठ भींच जाते हैं और आँखें फटी की फटी रह जाती हैं। मनोवैज्ञानिक प्रो. गिरधारीलाल श्रीवास्तव ने कहा है - "भय क्रोधावस्था में थायराइड ग्लैण्ड (गलग्रन्थि) समुचित कार्य नहीं करती, जिससे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।" स्वचालित तन्त्रिका-तन्त्र का अनुकम्पी-तन्त्र क्रोधावेश में हृदयगति, रक्त-प्रवाह तथा नाड़ी की
93 ध्यायतो विषयान्पुंस संगस्तेषूपजायते।
संगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते।। - गीता, 2/62 94 शिक्षा मनोविज्ञान, प्रो. गिरधारीलाल श्रीवास्तव, पृ. 181
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