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छोड़ पाते तो आप गरीब हैं। दान मालकियत का लक्षण है और संग्रह गरीबी का।" कहते हैं, बहती सरिता सुन्दर और पवित्र होती है, पर इकट्ठा पानी/ संग्रहित जल दूषित और गंदा होता है तथा शीघ्र नष्ट हो जाता है। अतः संग्रहित धन अधिक दिन तक रहेगा तो सरकार, डाकू या डॉक्टर में खर्च हो जाएगा। इसलिए धन का अधिक संग्रह करना ही नहीं। यदि किया भी है तो उसको दान देकर ममत्वबुद्धि का त्याग करना चाहिए। 3. उपभोक्ता संस्कृति और अपरिग्रह –
उपभोक्ता संस्कृति और अपरिग्रह परस्पर विरोधी विचारधाराएं हैं। उपभोक्ता संस्कृति कहती है - अधिक से अधिक वस्तुओं का प्रयोग करो। इसके विपरीत अपरिग्रह की विचारधारा कहती है - कम से कम वस्तुओं का प्रयोग करो। उपभोक्ता संस्कृति भोगवाद की ओर प्रवृत्त करती है और अपरिग्रह आत्म संयम की
ओर। एक अनन्त इच्छाओं की अन्तहीन पूर्ति का प्रयास है तो दूसरा इच्छाओं का परिसीमन । उपभोक्ता संस्कृति भौतिक इन्द्रियों की संतुष्टि के प्रयास रूप सुखवाद है, जबकि अपरिग्रह आत्मवादी इन्द्रिय-निग्रह। उपभोक्ता संस्कृति भौतिक विकास से जुड़ी हुई है और अपरिग्रह आत्मिक विकास से। ____ जैन विचारधारा भोगवाद की इस समस्या के प्रति प्राचीनकाल से सावधान रही है। तपस्या और निवृत्ति की भावना के साथ-साथ भगवान महावीर ने पांच महाव्रतों के रूप में मनुष्य को एक आदर्श दर्शन दिया है। पांच व्रतों में अपरिग्रह भोगवाद की समस्या का सही निदान है। आज के भागदौड़, संघर्षरत और तनावपूर्ण जीवन का मुख्य कारण यही है कि हमने अपनी इच्छाओं को बहुत बढ़ा लिया है। इच्छाएँ महावीर के युग से कई गुना अधिक बढ़ चुकी हैं। इस अभिशाप्त् असंतृप्त जीवन से मुक्ति पाने का एक ही रास्ता है, वह है उपभोक्ता संस्कृति के मोह का परित्याग और इच्छाओं का परिसीमन अर्था अपरिग्रह ।
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