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प्रतिशोध-रूपी क्रोध का यह निर्माणकारी स्वरूप ही मानव-जाति का आदि-अवस्था से विकसित अवस्था तक पहुंचना -इस बात का प्रमाण है।
क्रोध के प्रकार -
क्रोध के आवेग की तीव्रता एवं मन्दता के आधार पर क्रोध के चार भेद किए गए हैं, वे इस प्रकार हैं :1. अनन्तानुबंधी-क्रोध (तीव्रतम क्रोध) -
__ अनन्तकाल से अनुबन्धित", अनन्त भवों तक संस्कार-रूप में संयुक्त,” अनन्त पदार्थों में धारणाजनित, अनन्त संसार का कारणरूप,28 सम्यग्दर्शन का विघातक29, अनन्तानुबन्धी (कषाय) क्रोध है। पत्थर में पड़ी दरार के समान क्रोध जो किसी के प्रति एक बार उत्पन्न होने पर जीवन पर्यन्त बना रहता है। अज्ञानावस्था में शरीर में अहंबुद्धि तथा पदार्थों में ममत्वबुद्धि होती है, शरीर, स्वजन, सम्पत्ति आदि में आसक्ति प्रगाढ़ होती है। प्रिय संयोगों की प्राप्ति में बाधक तत्त्व अप्रिय लगता है, स्वार्थ में ठेस लगने पर क्रोध पैदा होता है, यह अनन्तानुबन्धी क्रोध है। .
__ 'भावदीपिका' में व्यावहारिक-स्तर पर इस क्रोध का स्वरूप बताया गया है। कहा गया है - क्रूर, हिंसक, निम्नतम, लोकाचार का उल्लंघन करने वाला, सत्यासत्य के विवेक से शून्य, देव-गुरु-धर्म पर अश्रद्धा रखने वाला व्यक्ति 'अनन्तानुबन्धी क्रोध' से युक्त होता है। अनन्तानुबन्धी क्रोध का काल
25 क) जल-रेणु-पुढवि-पव्वय-राई-सरिसो चउव्विहो कोहो। – प्रथम कर्मबंध गाथा-19
ख) एवामेव चउबिहे कोहे पण्णते तं जहा- पव्वयराइसमाणे, पुढविराइसमाणे, वालुयराइसमाणे, उदगराइसमाणे -स्थानांगसूत्र 4/3/311 26 अनन्तान् भवाननुबद्धं -धवला/पु.6/अ.1/सू.23 " अणंतेसु भवेसु अणुबंध -वही 28 अ) अणंतानुबंधो संसारा - वही
ब) अनन्तसंसार कारणत्वा - सर्वार्थसिद्धि/अ.8/सू 9 29 पढमो दसणघाई - गोम्मटसार जीवकाण्ड/गा. 283 30 भावदीपिका/ पृ. 51
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