________________
307
के अनुवादक के अनुसार, क्रोध के उदय को अधिक अभिव्यक्त न करना कोप है। सामान्यतः देखने में आता है कि कई व्यक्ति क्रोध आने पर वाचिक-प्रतिक्रिया नहीं करते हैं; पर चेहरे की स्तब्धता उनकी असामान्य स्थिति का बोध करा देती है, इसलिए बोलचाल की भाषा में कहते हैं - क्यों मुँह फुला रखा है ? मुँह क्यों चढ़ा रखा है ? 3. रोष -
___ शीघ्र शान्त नहीं होने वाला क्रोध रोष है।” रोष की अवस्था में व्यक्ति के चेहरे के हाव-भाव और क्रोधाभिव्यक्ति लम्बे समय तक बनी रहती है। इस अवस्था में आँखों की लालिमा से प्रकट होता है कि यह व्यक्ति क्रोध की अवस्था में है। 4. दोष -
__स्वयं पर या दूसरे पर दोष थोपना। कई व्यक्ति क्रोध की स्थिति में स्वयं पर दोष मढ़ते रहते हैं, जैसे – हाँ भाई, हम तो झूठ बोलते हैं, अथवा मैंने क्यों कहा? मुझे क्या पड़ी थी बीच में बोलने की?
5. अक्षमा -
दूसरों के अपराध को सहन न करना अक्षमा है, या अपराध क्षमा नहीं करना अक्षमा है। इस स्थिति में इतनी असहिष्णुता होती है कि भूल पर तुरन्त दण्ड देने की प्रवृत्ति होती है, जैसे – बच्चे जूते-चप्पल बाहर न उतारकर मंदिर, घर तक ले आए तो तुरन्त थप्पड़/चाँटा मारने वाले कई अभिभावक होते हैं, जबकि यह बात प्रेम से भी समझाई जा सकती है।
भगवतीसूत्र, अभयदेवसूरि वृत्ति, श. 12, उ 5. सू. 2 . 57 भगवतीसूत्र / अभयदेवसूरि वृत्ति / श 12/ उ. 5/ सू. 2 58 वही,
9 वही,
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org