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गति बढ़ा देता है। पाचक-क्रिया में विघ्न आता है, रुधिर का दबाव बढ़ता है तथा एड्रीनल ग्लैण्ड (अधिवृक्क ग्रंथि) को उत्तेजित करता है। क्रोध के प्रदीप्त होने पर शक्ति का हृास होता है, ऊर्जा नष्ट होती है, बल क्षीण होता है। मनोविज्ञान की मान्यता है -तीन मिनट किया गया तीव्र क्रोध नौ घंटे कठिन परिश्रम करने जितनी शक्ति को समाप्त कर देता है। जैसे दिन भर चलने वाली हवा से घर में उतनी मिट्टी नहीं आती, जितनी धूल पांच मिनट की आँधी में आ जाती है, वैसे ही पूरे दिन भर की भावदशा में इतने कर्म-परमाणु आत्मा में नहीं आते, जितने पांच मिनट के क्रोध में आ जाते हैं।
"जो क्रोधी स्वभाव के होते हैं, उनका विवेक और धैर्य तो नष्ट होता ही है, स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है।"2 क्रोध से हमारे स्नायुओं (Nerves} पर बार-बार तनाव आता है, इससे हमारा स्नायविक-संस्थान {Nervous System} दुर्बल होता जाता है। कमजोरी क्रोध के प्रभाव से उत्पन्न होती है। अधिक समय तक भूखा रहने पर भी व्यक्ति चिड़चिड़ा और क्रोधी हो जाता है।
क्रोध का एक स्वरूप : प्रतिशोध -
कषाय और संवेग के रूप में हमने क्रोध की विस्तृत व्याख्या की, क्रोध का एक स्वरूप प्रतिशोध भी है। प्रतिशोध की उत्पत्ति क्रोध से होती है, किन्तु प्रतिशोध की भीषणता क्रोध से अधिक होती है। क्रोधी में वेग होता है, किन्तु क्षणिक होता है। प्रतिशोधी में धारण-शक्ति होती है और वह शक्ति सापेक्षिक रूप से स्थायी होती है। "यदि कोई व्यक्ति हमारा अहित करे, तो उसके हित को चोट पहुंचाने की तीव्र इच्छा हमारे मन में उठती है। अहित की इसी प्रेरक-भावना का नाम प्रतिशोध है।"23 क्रोधावेश में प्राणी अहित करने के लिए आतुर होता है, किन्तु आवेश उतरते ही
21 सामान्य मनोविज्ञान की रूपरेखा – डॉ. रामनाथ शर्मा, पृ. 420-421 22 स्वास्थ्य रक्षक, रसवैद्य डॉ. प्रेमदत्त पाण्डेय, पृ. 32
प्रकाशित मन पत्रिका, लेख-दयानन्द योगशास्त्री, अक्टूबर 1984, पृ. 69
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