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5. कुप्यप्रमाणातिक्रम - वस्त्र, पात्र, शय्या, आसन आदि गृहोपकरण सम्बन्धी मर्यादा
का उल्लंघन करना।
भगवान महावीर ने संग्रह और ममत्व रूप परिग्रह का गृहस्थ के लिए सर्वथा निषेध नहीं किया है, सबसे पहले इच्छा को परिमित करने के लिए उपदेश दिया है, ज्यों-ज्यों इच्छा कम होती जाती है, त्यों-त्यों संग्रह और ममत्व भी कम होता जाता
उपर्युक्त पांचों अतिचारों का मूल भाव यही है कि गृहस्थ अपनी आवश्यकता से अधिक न तो भूमि, मकान आदि रखे, न धन-धान्य का संग्रह करे और न ही मर्यादा से अधिक पशु आदि रखे। धार्मिक दृष्टि से भी सर्व साधारण को उतनी ही सामग्री रखनी चाहिए जिससे जनता में आलोचना न हो तथा दूसरे उससे वंचित न हों और अपना कार्य भी सुचारू रूपेण चल सके।
दिगंबर ग्रंथ 'उपासकाध्ययन'88 में परिग्रह परिमाण–अणुव्रत में विक्षेप उत्पन्न करने वाले पांच अतिचारों का वर्णन भी मिलता है जो निम्न है - (1) अतिवाहन, (2) अतिसंग्रह (3) अतिविस्मय (4) अतिलोभ और (5) अति भारवाहन । (1) अधिक लाभ की आकांक्षा में शक्ति से अधिक दौड़-धूप करना। दिन-रात
उसकी आकुलता में उलझे रहना और दूसरों से भी नियम-विरूद्ध अधिक काम लेना 'अतिवाहन' है। अधिक लाभ की इच्छा से उपभोक्ता वस्तुओं का अधिक समय तक संग्रह करके रखना। अर्थात् मुनाफाखोरी या जमाखोरी की भावना रखकर संग्रह करना 'अतिसंग्रह है।
88 अतिवाहनादिसंग्रहं द्रव्यसंग्रहाति भारारोपणं' पंचाक्षविषयमूर्छा मर्यादा विस्मृति पंचात्याः ।। - उपासकाध्ययन 9/51
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