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सामाजिक-अपराध है, क्योंकि उसमें कहीं-न-कहीं हिंसा का भाव और परिग्रह की वृत्ति जुड़ी हुई है । जैन - मनोवेज्ञानिकों का कहना है कि आवश्यकता की पूर्ति तो की जाए पर उसकी एक मर्यादा हो । सार्वजनिक सड़क पर चलने का अधिकार सबको है, परन्तु दूसरे के मार्ग को अवरुद्ध करने या टक्कर मारने का अधिकार किसी को भी नहीं। यही बात संचयवृत्ति / परिग्रह - संज्ञा पर भी लागू होती है और इसका उल्लंघन सामाजिक अपराध है। 7
4. वर्ग-संघर्ष
आर्थिक विकास केवल इच्छापूर्ति के लिए, या केवल विलासिता के लिए सारा प्रयत्न नहीं होता। आर्थिक विकास जो मनुष्य करता है, उसका एक दृष्टिकोण बनता है- सुविधा । व्यक्ति को सुविधा चाहिए, इसलिए वह अर्थ का संग्रह करता है। इस कारण, समाज तीन वर्गों में बंट जाता है - 1. अमीर - वर्ग, 2. मध्यम वर्ग, 3. सामान्य-वर्ग। अमीर वर्ग के लोग अपनी सुखसुविधा के लिए आलीशान बंगले, गाड़ी, आभूषण आदि के लिए धन का संचय करते हैं। मध्यम वर्ग के व्यक्ति अपना स्तर सुधारने के प्रयास से धन के संचय में रत रहते हैं, वहीं गरीब/सामान्य लोगों की आवश्यकता मात्र रोटी, कपड़ा और मकान तक ही सीमित हो जाती है। वे आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अर्थ का प्रयोग करते हैं ।
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वस्तुतः देखा जाए तो आर्थिक - विषमता का मूल कारण संग्रह - भावना ही है। यह कहा जाता है कि अभाव के कारण संग्रह की चाह उत्पन्न होती है। लेकिन वस्तुस्थिति कुछ और ही है । जीवन जीने के लिए अभावों की पूर्ति सम्भव है। लेकिन कृत्रिम अभाव की पूर्ति संभव नहीं । उपाध्याय अमरमुनिजी लिखते हैं - गरीबी स्वयं में कोई समस्या नहीं, किन्तु अमीरों ने उसे समस्या बना दिया है। गड्ढा स्वयं में कोई समस्या नहीं है, किन्तु पहाड़ों की असीम ऊँचाईयों ने इस धरती पर जगह-जगह गड्ढे पैदा कर दिए हैं। पहाड़ टूटेंगे, तो गड्ढे अपने-आप भर जाएंगे। सम्पत्ति का
67 डॉ. सागरमल जैन से वैयक्तिक चर्चा के आधार पर ।
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