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हैं। जैसे - एक बच्चा अग्नि से हाथ जल जाने के बाद दर्द की अनुभूति से यह निश्चित कर लेता है कि आग के संपर्क से दर्द होता है, अतः वह आग से भयभीत होता रहता है। इस प्रकार; भय, दर्द और चिन्ता -ये तीनों एक दूसरे से अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं। जो-जो दुःखद् अनुभूतियाँ हैं वे सब भय को जन्म देती हैं। चिन्ता, भय और दुःख -ये तीनों शब्द एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं, किन्तु इन तीनों में एक क्रम भी है। दुःखद् अनुभूतियाँ भय को उत्पन्न करती हैं और भय से चिन्ता का जन्म होता है। जैसे-जैसे दुःखद् अनुभूतियाँ हमें अनुभूत होती हैं, वैसे-वैसे हम उनसे भयभीत होने लगते हैं और भविष्य में इन भयानक स्थितियों का सामना न करना पड़े, इसलिए चिन्तित रहते हैं।
भय व्यक्ति को भयभीत करता है और चिन्ता मानसिक-तौर पर निरन्तर भय को बनाए रखती है। एक सिपाही पहली बार मशीनगन चलाता है और उसे चलाते समय उसके हाथ-पैर कम्पित होने लगते हैं, तो यह व्यवहार भय को प्रदर्शित करता है। वही सिपाही स्वप्न में जब मशीनगन चलाता है तो निद्रा में ही भय से पसीना-पसीना हो जाता है। इस प्रकार का भय का संवेग चिन्ता ही कहलाता है।
यह चिन्ता वह दुःखद स्थिति है, जो व्यक्ति के चित्त में बैठ जाती है। इस प्रकार, दुःखद अनुभूति से भय, भय से चिन्ता और चिन्ता से भय की निरन्तरता बन जाती है। इसे ही अंग्रेजी में फोबिया (Phobias) कहते हैं। दुर्भीति (Phobias) एक बहुत ही सामान्य चिन्ता विकृति है, जिसमें व्यक्ति किसी ऐसी विशिष्ट वस्तु (object) या परिस्थिति (situation) से सतत एवं असंतुलित मात्रा में डरता है, जो वास्तव में व्यक्ति के लिए कोई खतरा या न के बराबर खतरा उत्पन्न करता है।
उदाहरणार्थ- एक व्यक्ति कभी नाव में बैठा। संयोग से वह नाव उलट गई और वह डूबने लगा। यद्यपि उसे डूबते हुए बचा लिया गया, किन्तु उसके मन में पानी, नदी और नाव के प्रति भय के स्थायी भाव का संचार हो गया। भय का यह स्थायी भाव ही फोबिया (Phobia) कहा जाता है। यह स्थायी भय कभी दैहिक-कारणजन्य भी होता है और कभी मानसिक कारणजन्य भी। किसी पागल
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