________________
150
उसे कमलनयनी कहते हैं,22 परन्तु पुरुष की दैहिक-संरचना स्त्री की अपेक्षा कुछ कठोर एवं भिन्न होती है। इसी विपरीत दैहिक-संरचना के कारण पुरुष का आकर्षण स्त्री में और स्त्री का आकर्षण पुरुष में होता है, अतः विपरीत लिंग को प्राप्त करने की, परस्पर बात करने की और स्पर्श करने की इच्छा होती है, उससे ही मैथुन-संज्ञा की उत्पत्ति होती है। स्त्री और पुरुष दोनों के परस्पर मिथुन-भाव अथवा मिथुन-कर्म की इच्छा को ही मैथुन-संज्ञा कहा जाता है। चारित्रमोहनीय-कर्म के उदय से -
चारित्रमोहनीय-कर्म की एक प्रवृत्ति वेद, अर्थात् संभोग की इच्छा है, उसी के विपाकोदय से स्त्री-पुरुष में जो स्पर्श आदि की इच्छा होती है, उस इच्छा के अनुरुप जो वचन प्रवृत्ति तथा कर्म (मैथुनकर्म) होता है, वह मैथुन है।23 The lustful desire as well as action male and female to copulate is incontinence. 24 स्त्री-पुरुष का वासनायुक्त संभोग का भाव एवं कार्य चारित्रमोहनीय-कर्म के उदय से ही होता है, क्योंकि स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद मोहनीय-कर्म की प्रकृतियाँ हैं। काम-भोग की अभिलाषा को वेद कहते हैं। वेद, अर्थात् वासना। पुरुषवेद के उदय से स्त्री-संभोग की इच्छा होती है, स्त्रीवेद के उदय से पुरुष-संभोग की इच्छा होती है, नपुंसकवेद के उदय से स्त्रीसंभोग और पुरुषसंभोग -दोनों की इच्छा पैदा होती है। जैन-शास्त्रों के अनुसार, वेदों के उद्दीपन के कारण ही मैथुन-संज्ञा उत्पन्न होती है। जैन-कथासाहित्य के अनुसार चारित्रमोहनीय-कर्म का जब तीव्र उदय हुआ, तो मासक्षमण के पश्चात् पुनः मासक्षमण जैसी उग्र तपश्चर्या करने वाले संभूति मुनि केवल स्त्री की केशराशि के स्पर्शमात्र से कामातुर हो गए और
" ब्रह्मचर्य, श्री रत्नसेन विजयजी, पृ.56 " तत्त्वार्थसूत्र, उपाध्याय श्री केवल मुनि, पृ. 314 24 तत्त्वार्थसूत्र, छगनलाल जैन, पृ. 190 25 सोलम इमे कसाया एसो नवनोकसायसंदोहो
इत्थी पुरिस नपुंसकरूवं वेयत्तयं तमि। - प्रवचनसारोद्धार, गाथा 1257 26 वेदोदय कामपरिणामा काम्यकर्म सहु त्यागी,
निःकामा करूणारससागर, अनंत चतुष्क पद पागी-श्री मल्लीनाथ स्तवना, योगिराज आनंदघन जी
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org