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4. जैनदर्शन की मैथुन-संज्ञा की फ्रायड के लिबिडो से तुलना एवं समीक्षा -
जैनदर्शन के अनुसार संज्ञा एक जैविक-प्रवृत्ति है जो प्रत्येक संसारी-जीव में पाई जाती है। इन संज्ञाओं में मैथुन-संज्ञा भी सम्मिलित है। इसे हम कामवासना भी कह सकते हैं। जैनदर्शन के अनुसार, मैथुन-संज्ञा (कामवासना) न केवल मनुष्यों में, अपितु सभी प्राणियों में, यहां तक कि एकेन्द्रिय जीवों, अर्थात् वनस्पति आदि में भी पाई जाती है और उसी से नवसृजन होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, सृष्टि-चक्र का आधार मैथुन-संज्ञा या कामवासना है और उन्होंने यह भी सिद्ध किया है कि कुछ वनस्पतियाँ, जैसे -कुरुबक, अशोक, तिलक आदि के वृक्ष स्त्री के स्पर्श, पादप्रहार, कटाक्ष आदि से ही फलते-फूलते हैं।
जीव-वैज्ञानिकों के समान ही मनोवैज्ञानिकों ने भी मैथुन-संज्ञा की सर्वव्यापकता को स्वीकार किया है। आधुनिक मनोवैज्ञानिकों में सिगमण्ड फ्रायड {Sigmund Freud} एक ऐसे मनोवैज्ञानिक हैं जो कामतत्त्व या मैथुनसंज्ञा की सर्वव्यापकता को स्वीकार करते हैं। इस प्रकार तुलनात्मक-दृष्टि से विचार करें, तो मैथुन-संज्ञा या कामतत्त्व की सर्वव्यापकता को आधुनिक मनोविज्ञान और जैनदार्शनिक दोनों ही स्वीकार करते हैं। फ्रायड ने मैथुन-संज्ञा या कामतत्त्व को "लिबिडो' का नाम दिया है। जिसका वास्तविक अर्थ है – सुख की चाह। वह यह मानता है कि छोटे से बच्चे से लेकर बड़े तक यह कामतत्त्व (लिबिडो) पाया जाता है। जैन-दार्शनिक यद्यपि इसके नियंत्रण की बात करते हैं, तथापि इसकी सर्वव्यापकता से वे भी इन्कार नहीं करते। फ्रायड ने मानस के तीन विभाग किए हैं - चेतन {Conscious}, अर्द्धचेतन {Subconscious} और अचेतन {Unconscious} |95 चेतन {Conscious} -
चेतन से तात्पर्य मन के ऐसे भाग से होता है, जिसमें वे सभी अनुभूतियाँ होती हैं, जिनका संबंध वर्तमान से होता है। दूसरे शब्दों में, चेतन क्रियाओं का सम्बन्ध तात्कालिक अनुभवों से होता है, फलतः चेतन व्यक्तित्व के छोटे एवं सीमित पहलू
* आधुनिक सामान्य मनोविज्ञान, अरुणकुमार सिंह आशीषकुमार सिंह, पृ. 570
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