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संस्कृत-हिन्दी-कोश के अनुसार इसके निम्न अनेक अर्थ हैं - निकालना, प्रक्षेपन, हटाना, दूर करना, उद्वमन, उन्मूलन, निष्कासन, रोकना, दबाना विनाश आदि 1104
जैनसाधना-पद्धति तो समत्व (समभाव) की साधना है। 105 वासनाओं के दमन का मार्ग तो चित्तक्षोभ उत्पन्न करता है, अतः वह उसे स्वीकार्य नहीं है। जैनसाधना का आदर्श क्षायिक-साधना है, जिसमें वासना का दमन नहीं, वरन् वासना–क्षय ही साधक का लक्ष्य है।
वासनाओं का क्षय कैसे किया जाए ? इस संदर्भ में आचार्य हेमचन्द्र योगशास्त्र में कहते हैं कि मन जिन-जिन विषयों में प्रवृत्त होता हो, उनसे उसे बलात् नहीं रोकना चाहिए, क्योंकि बलात् रोकने से वह उस ओर अधिक दौड़ने लगता है और न रोकने से शान्त हो जाता है। जैसे मदोन्मत हाथी को रोका जाय तो वह और अधिक प्रेरित होता है और उसे न रोका जाए तो वह अपने इष्ट विषयों को प्राप्त करके शान्त हो जाता है, यही स्थिति वासनाओं और मन की है। साधक अपने-अपने विषयों को ग्रहण करती हुई इन्द्रियों को न तो रोके और न उन्हें प्रवृत्त करे। वह केवल इतना ध्यान रखे कि विषयों के प्रति रागद्वेष उत्पन्न न हो। वह प्रत्एक स्थिति में तटस्थ बना रहे। वह अपनी वृत्ति को उदासीन बना ले और किंचित् भी संकल्प-विकल्प न करे। जो चित्त-संकल्पों से व्याकुल होता है, उसमें स्थिरता नहीं आ सकती।06
इस प्रकार कमनीय रूप को देखता हुआ और मनोज्ञ वाणी को सुनता हुआ, सुगंधित पदार्थों को सूंघता हुआ, रस के आस्वादन का अनुभव करता हुआ, कोमल पदार्थों का स्पर्श करता हुआ, और अनुभूतियों को न रोकता हुआ भी, उदासीन भाव से युक्त तथा आसक्ति का परित्याग करके, बाह्य और आन्तरिक-चिन्ताओं एवं
104 संस्कृतहिन्दी कोश पृ. 535 105 उत्तराध्ययनसूत्र - 23/58 106 योगशास्त्र - 12/27-28, 12/26, 12/19
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