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बार अवेदी होकर (ग्यारहवें गुणस्थान से गिरकर) पुनः संवेदी हो जाता है, उसे सादि सपर्यवसित संवेदक कहा जाता है। अवेदक जीव दो प्रकार के होते हैं - 1. सादिअपर्यवसित एवं 2. सादि-सपर्यवसित। जो जीव एक बार अवेदक होने के बाद पुनः संवेदक नहीं होते, वे प्रथम प्रकार में तथा पुनः संवेदक होने वाले द्वितीय प्रकार में आते हैं। सादि-सपर्यवसित जीवों की अवेदकता जघन्य एक समय एवं उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त रहती है। अल्प-बहुत्व की अपेक्षा से स्त्री, पुरुष एवं नपुंसकों में पुरुष सबसे अल्प है, स्त्रियां उनके संख्यातगुना हैं, नपुंसक उनसे भी अनंतगुना हैं।94
प्रज्ञापनासूत्र, पद-18, सूत्र 1326-1330 94 जीवाभिगम प्रतिपत्ति 2, सूत्र 62 (1-9)
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