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पद-पद पर विषादग्रस्त हो जाता है। पद-पद पर विषादग्रस्त होना ही संकल्प-विकल्पों का पारणाम है। .. .
भगवदगीता में भी काम के संकल्प से अधःपतन एवं सर्वनाश का क्रम दिया है। कहा है -"जो व्यक्ति मन से विषयों का स्मरण-चिन्तन करता है, उसकी आसक्ति उन विषयों में हो जाती है। आसक्ति से उन विषयों को पाने की कामना (काम) पैदा होती है। काम्य-पूर्ति में विघ्न पड़ने से क्रोध होता है। क्रोध से अविवेक अर्थात् मूढभाव पैदा होता है। सम्मोह (मूढ़भाव) से स्मृति भ्रान्त हो जाती है। स्मृति के भ्रमित या भ्रष्ट हो जाने से बुद्धि (ज्ञान-विवेक की शक्ति) नष्ट हो जाती है और बुद्धिनाश से मनुष्य का सर्वनाश यानि श्रेयः साधन से सर्वथा अधःपतन हो जाता है।
जो मनुष्य शरीर में आसक्त हैं, वे विषयों की ओर खिंचे चले जाते हैं, इस प्रकार बार-बार दुःख उठाते हैं। काम-भोगों के ए कटु परिणाम हैं। इन्हें जान लेना चाहिए। इन्द्रिय-विषय या कामवासनाएं व्यक्ति को चारों ओर से घेर लेती हैं। जैसे आवर्त (भंवर) में फंसा व्यक्ति निकल नहीं सकता, वैसे ही विषयों में घिरा हुआ व्यक्ति स्वयं को असहाय पाता है, इसीलिए कहा गया है कि जो विषय है, वह आवर्त (संसार) है और जो आवर्त (संसार) है, वे ही विषय हैं।64 यहां विषय और आवर्त्त का एकत्व प्रतिपादन कर यह निर्दिष्ट किया गया है कि साधक को यदि विषयों का ग्रहण करना ही पड़े तो मूर्छा नहीं करना चाहिए, क्योंकि मूर्छा से ग्रस्त व्यक्ति इच्छा के अधीन होकर विषयलोलुप हो जाता है और फिर विषयों से छुटकारा लगभग असम्भव हो जाता है। कामनाओं का अतिक्रमण सहज नहीं है, वे विशाल हैं, दुराग्रही और हठीली हैं, इसलिए अज्ञानी पुरुष उनकी पूर्ति के लिए क्रूर-से-क्रूर
61 दशवैकालिकसूत्र, आचार्य श्री आत्मारामजी म., पृ. 20 62 ध्यायतो विषयान् पुंसः, संगस्तेषूपजायते
संगात् संजायते कामः, कामात्क्रोधोऽभिजायते।। क्रोधाद् भवति सम्मोहः, सम्मोहात् स्मृतिविभ्रमः स्मृतिभ्रंशात् बुद्धिनाशो, बुद्धिनाशात् प्रणश्यति।। - भगवद्गीता, अ.-2, श्लोक 62-63
आचारांगसूत्र - 5/11-13 64 जे गुणे से आवट्टे, जे आवटे से गुणे - वही, 1/93 .
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