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दाढ़ी, मूंछ आदि। स्त्री के चिह्नों में दाढ़ी, मूंछ का अभाव और स्त्री-लिंगाकृति का सद्भाव और नपुंसक में स्त्री-पुरुष दोनों के कुछ चिह्नों को नपुंसक-द्रव्यवेद कहते हैं। ज्ञातव्य है कि द्रव्यवेद और लिंग एकार्थक हैं। संवेदना, अभिलाषा, इच्छा भाववेद हैं। 86 मोहनीय कर्म के उदय से स्त्री को पुरुष के साथ कामभोग की इच्छा स्त्रीभाववेद, पुरुष को स्त्री के साथ कामभोग की इच्छा पुरुषभाववेद तथा स्त्री और पुरुष दोनों के साथ कामभोग की इच्छा को नपुंसकभाववेद कहते हैं।” द्रव्यवेद और भाववेद सहभावी होते हैं। परन्तु कहीं-कहीं विषमता भी पाई जाती है, यानी बाह्यशरीर, आकृति और चिह्न पुरुष के होते हैं, लेकिन भाव स्त्री या नपुंसक जैसे होते हैं।
वेद का स्वरुप -
काम-वासना की तीव्रता की दृष्टि से जैन-विचारकों के अनुसार पुरुष की काम-वासना शीघ्र ही प्रदीप्त हो जाती है और शीघ्र ही शान्त हो जाती है। स्त्री की कामवासना देरी से प्रदीप्त होती है और प्रदीप्त हो जाने पर पर्याप्त समय तक शान्त नहीं होती। नपुंसकवेद की कामवासना शीघ्र प्रदीप्त हो जाती है, लेकिन शान्त देरी से होती है।
स्त्रीवेद -
स्त्रीवेद कंडे की अग्नि और बकरी के मल की अग्नि के समान कहा गया है। गोबर और बकरी का मल विलम्ब से प्रज्ज्वलित होता है किन्तु एक बार प्रज्ज्वलित होने के बाद उसका ताप उत्तरोत्तर बढ़ता जाता है। ठीक उसी प्रकार, स्त्री के मन में पुरुष के साथ कामभोग की इच्छा थोड़ी देर से उत्पन्न होती है, किन्तु वह जल्दी तृप्त या शांत नहीं होती है और उत्तरोत्तर तीव्र होती जाती है।99
86 भगवई विआहपण्ण्ती - आचार्य महाप्रज्ञ - 1/प्र. 259 87 दण्डक प्रकरण – मुनि मनितप्रभसागर, पृ. 550 88 जैन साइकॉलाजी, पृ. 131-134 89 वेयस्स सरूवं प. इत्थिवेए भंते! किं पगारे पण्ण्त्ते।
उ. गोयमा! फुफुअग्निसमाणे पण्णत्ते। - जीवाभिगम, प्रतिपत्ति 2, सूत्र 51(2)
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