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ही वह भ्रम में है।43 मनुष्य मानों चलनी से पानी भरना चाहता है जो कभी भर ही नहीं सकता। जिसकी कामनाएं तीव्र होती हैं, वह मृत्यु से ग्रस्त होता है और जो मृत्यु से ग्रस्त होता है, वह शाश्वत् सुख से दूर रहता है, परन्तु जो निष्काम होता है, वह न तो मृत्यु से ग्रस्त होता है और न शाश्वत् सुख से दूर होता है।
काम के दो प्रकार हैं - द्रव्य-काम और भाव-काम। 46 विषयासक्त मनुष्यों द्वारा काम्य (इच्छित) इष्ट शब्द, रुप, रस, गन्ध और स्पर्श को काम कहते हैं। जो मोह के उदय के हेतु-भूत द्रव्य है, जिसके सेवन द्वारा शब्दादि विषयों का सेवन होता है, वह द्रव्य-काम है।" तात्पर्य यह है कि मनोरम रुप, स्त्रियों के हास-विलास या हावभाव एवं कटाक्ष आदि, अंग-लावण्य, उत्तम शय्या, आभूषण आदि कामोत्तेजक द्रव्य द्रव्यकाम कहलाते हैं। 48 शब्द, रुप, रस, गन्ध और स्पर्श में आसक्त व्यक्ति आत्मा के वास्तविक रुप को नहीं जान सकता, क्योंकि ये सभी विषय इन्द्रियों से सम्बन्धित है। इन्द्रियां शरीर का ही अंग है, आत्मा तो अतीन्द्रिय है। शुद्ध आत्मा में तो वर्ण, रस आदि तथा स्त्री पुरुष आदि पर्याय और संस्थान संहनन होते नहीं हैं। विषय-भोग द्वारा प्राप्त शारीरिक-सुख, जिसे हम वस्तुतः सुख समझते हैं, सुख होता ही नहीं। इसकी तुलना खुजली के रोगी से की जा सकती है। खुजली का रोगी
43 न शयानो जेयन्न्द्रिां , न भुंजानो जयेत् क्षुधाम्
न कामज्ञानः कामानां, लभनेह प्रशाम्यति।। - आचारांगसूत्र टिप्पणी-15, पृ. 147 ** अणेगचित्ते खलु अय पुरिसे, से केयणं अरिहए पूरइत्तए। - आचारांगसूत्र -3/42 45 गुरू से कामा, तओ से मारस्स अंतो,
जओ से मारस्स अंतो, तओ से दूरे। नेव से अंतो नेव दूरे। - वही- 1/5/1. 46 नामं ठवणा काया दव्वकामा य भावकाम य| - नियुक्ति, गा. 161
सद्दरसरूवगंधफासा उदयंकरा य जे दव्वा। - नियुक्ति, गा. 162 48 जाणिय मोहोदयकारणाणि वियऽमासादीणि दव्वाणि तेहिं अभवहरिएहिं सद्दाहिणो विसया
उद्दिजंति एते दव्वकामा – जिन. चूर्णि, पृ. 75 49 श्रमणसूत्र - 183
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