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कामवासना का स्वरुप एवं लक्षण -
काम शब्द (कम् + घञ्] धातु से बना है, जिसका अर्थ है – कामना, इच्छा (Desire), स्नेह, अनुराग और दूसरा अर्थ है- प्रेम, विषय-भोग की इच्छा या यौन सम्बन्ध (Sex) स्थापित करना आदि। उसी प्रकार, वासना शब्द वास् + णिच् + युच् + टाप} धातु से बना है जिसका अर्थ हैं - स्मृति से प्राप्त ज्ञान, रुचि, कल्पना, मिथ्या-विचार, अज्ञान, अभिलाषा। इस प्रकार, कामवासना का शाब्दिक अर्थकामनापूर्वक या अभिलाषापूर्वक यौन अंगों के स्पर्श या संघर्षण की इच्छा है। काम-भोग सम्बन्ध को 'काम' कहते हैं। 4 विषयासक्त मनुष्यों द्वारा काम्य, अर्थात् इष्ट शब्द, रुप, गन्ध, रस तथा स्पर्श को काम कहते हैं। भारतीय ऋषि-मुनियों ने मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ बताए हैं। 'पुरुषार्थ चतुष्य' की अवधारणा हिन्दूधर्मदर्शन की आधारशिला है। इस अवधारणा का उल्लेख हमें जैनदर्शन में मोक्ष-चर्चा के प्रसंग में मिलता है। हेमचन्द्र ने योगशास्त्र में पुरुषार्थ-चतुष्टय का उल्लेख किया है। दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थ 'ज्ञानार्णव' में भी कहा गया है कि प्राचीनकाल से ही महर्षियों ने 'धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष - ये पुरुषार्थ के चार भेद माने हैं, किन्तु इस स्वीकृति के बावजूद पहले तीन पुरुषार्थ नाशसहित और संसार के रोगों से दूषित बताए गए हैं अतः ज्ञानी पुरुषों को केवल मोक्ष के लिए ही प्रयत्न करने को कहा गया है। इसी प्रकार, परमात्मप्रकाश में भी धर्म, अर्थ और काम –इन सभी पुरुषार्थों से मोक्ष को ही 'उत्तम' माना गया है, क्योंकि अन्य किसी में परम सुख नहीं है। वस्तुतः, जैनदर्शन केवल मोक्ष को ही पुरुषार्थ रूप में स्वीकार करता है, परन्तु
34 काम्यन्तेऽमिलष्यन्त एव न तु विशिष्टशरीर संस्पर्शद्वारेणोपयुज्यन्ते ये ते कामाः ।
मनोज्ञेषु शब्देषु संस्थानेषु च। भ. 35 1) ते इट्ठा सद्दरसरूवगंधफासा कामिज्जमाणा विसयपसत्तेहिं कामा भवंति। - जि.चू. पृ. 75
2) शब्दरसरूपगन्धस्पर्शाः मोहोदयाभिभूतैः सत्त्वैः काम्यन्त इति कामाः। - हा.टी. पृ. 85 36 धर्मश्चार्थश्चकामश्च मोक्षश्चेति महर्षिभिः
पुरूषार्थोऽयमुद्दिष्टश्चतुर्भेदः पुरातनैः ।। - ज्ञानार्णव, 3/4 शुभचन्द्र, परमश्रुत प्रभावक मण्डल (आगास,1978) 37 ज्ञानार्णव - 3/3, वही. 4.5 38 परमात्मप्रकाश, योगिन्दुदेव, परमश्रुत प्रभावक मण्डल, आगास, वि.सं. 2029, 2.3
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