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गुह्यभाषण -
एकान्त में मैथुन-क्रीड़ा सम्बन्धी गुप्त बात करना, एकान्त में मिलने के लिए स्त्रियों को संकेत करना आदि।
संकल्प -
किसी स्त्री के साथ शारीरिक संबंध बनाने का निश्चय करना संकल्प
कहलाता है।
अध्यवसाय -
संकल्प के अनुसार चेष्टा करने को अध्यवसाय कहते हैं। क्रिया-निष्पत्ति -
स्त्री के साथ शारीरिक संबंध को क्रिया-निष्पत्ति कहते हैं।
ये मैथुन के प्रकार कहे गए हैं। जो साधक ब्रह्मचर्य एवं संयम के महत्त्व को समझते हैं, उनका जीवन उन्नति के शिखर पर पहुंच जाता है। ब्रह्मचर्य का अपूर्व तेज उनके जीवन के कण-कण में व्याप्त हो जाता है। ब्रह्मचारी साधक को आठ प्रकार के मैथुन का त्याग करना ही चाहिए, साथ ही मैथुन प्रवृत्ति का भी त्याग करना चाहिए। मैथुन के उपसेवन को 'परिचारणा'32 कहते हैं। शास्त्र में पाँच प्रकार की परिचारणा का वर्णन मिलता है।
काय-परिचारणा।
स्पर्श-परिचारणा।
रुप-परिचारणा।
शब्द-परिचारणा।
मन:-परिचारणा।
क) स्थानांगसूत्र - 5/ 402 2051 2050
क) स्थानांगसूत्र - 5/402 ख) प्रज्ञापनासूत्र - 4/34, 2051, 2052
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