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अभय और विश्व-शांति
भय की भावना को निरस्त करने के लिए अभय की भावना का विकास आवश्यक है। आज प्रायः हर व्यक्ति भयाक्रान्त है, क्योंकि सर्वत्र अविश्वास एवं असुरक्षा की भावना है। भगवान् महावीर ने कहा है – “प्रमादी, अर्थात् असजग को सब तरफ से भय होता है और सजग या सावधान भय-मुक्त होता है।"59 प्रमाद या असजगता इसलिए है कि बुद्धि का जागरण तो है, किन्तु प्रज्ञा सोई हुई है। बुद्धि भय को मिटा नहीं सकती है, बल्कि भय को अधिक सूक्ष्मता से पकड़ लेती है, इसलिए बुद्धि जितनी प्रखर होगी, उतना ही अधिक भय होगा। उदाहरणतः, सामान्य व्यक्ति कम भयभीत है, पर एक पढ़े-लिखे व्यक्ति एवं वैज्ञानिक आदि के सामने अनेकों संकट हैं। उनके सामने ऊर्जा का संकट है, आबादी का संकट है, पर्यावरण का संकट है, परमाणु-अस्त्रों का संकट है, जबकि सामान्य व्यक्ति इन भयों से परे है। भयभीत व्यक्ति सुरक्षा की कोशिश करता है, किन्तु अभय को प्राप्त व्यक्ति निडर और शान्त होता है।
भगवान् महावीर ने स्पष्ट रूप से कहा था -"अभय से बढ़कर अन्य कोई भी वस्तु नहीं" और अभय का विकास पारस्परिक-विश्वास से होगा। कहा भी गया है"अशस्त्र में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं।' आज विश्व शान्ति के लिए निःशस्त्रीकरण आवश्यक है और यह निःशस्त्रीकरण भय और अविश्वास को समाप्त करके ही संभव है। इसके लिए हमें अभय का विकास करना होगा, अभय के विकास से पारस्परिकविश्वास बढ़ेगा और मानव-जाति सुख और शान्तिपूर्वक अपना जीवन जी सकेगी।
विश्व-शान्ति मानव-जाति के अस्तित्व, विकास एवं प्रगति के लिए अत्यन्त आवश्यक है। युद्ध का भय, विकास एवं प्रगति के सभी साधनों को शांतिपूर्ण उपयोग से हटाकर युद्ध या युद्ध की तैयारियों के लिए मोड़ देता है। मानव-इतिहास के रक्तरंजित पृष्ठ युद्ध की भयानकता व विनाशकता के जीवन्त उदाहरण हैं, किन्तु
59 सव्वओ पमत्तस्स भयं,
सव्वओ अपमत्तस्स नत्थि भयं। - आचारांग 1/3/4
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