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प्रकार, हजारों प्रकार के भय सूक्ष्म रूप से हमारी चेतना में रहते हैं। ज्ञानी को भी यह भय रहता है कि कोई उसे अज्ञानी न समझे, उसका अपमान न कर दे। उच्च पदस्थ व्यक्तियों को अपनी प्रतिष्ठा व पद से गिरने का भय रहता है, साथ ही उन्हें यह भी भय रहता है कि कोई उनकी गलती न देख ले, या किसी को उनकी कमजोरियों का पता न चले। प्रायः, ज्यादातर व्यक्ति पूर्व प्रदत्त संस्कारों, मान्यताओं के वशीभूत होकर पाप करने से भी डरते हैं।
अधिकांश भय कल्पनाजनित होता है, जैसे - मार्ग में खड़ी गाय पांच-सात लोगों को अपनी ओर आते देख भयभीत हो जाती है, कारण गाय को यह सन्देह होता है कि कहीं वे मुझ पर आक्रमण करने तो नहीं आ रहे हैं। कई व्यक्ति तरूण-वय सदैव बनी रहे, इसके लिए शक्तिवर्द्धक औषधियों, टॉनिक आदि का प्रयोग करता है। यह भी वे भय के कारण ही करते हैं। वृद्धावस्था छुपाने के भय से व्यक्ति बालों को काला करता है, शरीर की झुर्रियों के निवारण के लिए पाउडर, कास्मेटिक्स आदि का प्रयोग करता है, गरीबी के भय से धन कमाने के लिए हिंसक कार्य करता है। वह अपनी इच्छा, अभिलाषा की पूर्ति नहीं होने पर दुःखी होता है। यही दुःख प्राणियों में भय उत्पन्न करता है और प्रत्येक जीव निरन्तर यह प्रयास करता है कि वह भय को त्याग अभय को कैसे प्राप्त करे ?
भय-संज्ञा का स्वरूप -
भय-संज्ञा – जिसके उदय से उद्वेग उत्पन्न होता है वह भय है।' भीतिर्भयम भीति को भय कहते हैं। अंतरंग में भय-नोकषाय का उदय होने से तथा बहिरंग में अत्यन्त भयंकर वस्तु देखने से और उस ओर ध्यान जाने से शक्तिहीन प्राणी को जो भय उत्पन्न होता है, उसे ही भय-संज्ञा कहते हैं। यह संज्ञा आठवें गुणस्थान तक
यदुदयादुद्वेगस्तद्भयम्। -स.सि. 8/9/386/1 'भीतिर्भयम् – धवला -19/1/2
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