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में होने वाले परिवर्तनों के कंपनों को ग्रहण कर सकें। यदि किसी व्यक्ति के सामने अचानक कोई दुष्ट आदमी छु। लेकर खड़ा हो जाए, तो उस व्यक्ति के रोम-रोम में भय का संचार हो जाएगा। उसके शरीर की विद्युत-तरंगे एक खास ढंग से कंपित होने लगेंगी। वह कंपन उसके पास स्थित विद्युत-यंत्रों में स्पष्ट दिखाई देगा। यदि व्यक्ति उस समय विश्वास से भरा हुआ होगा, तो उसके शरीर में कुछ अन्य तरह के कंपन होंगें। व्यक्ति आश्चर्यजनक स्थितियों से, अथवा भयानक स्थितियों से भरा हुआ है, तो उसकी प्राण-विद्युत के प्रवाह में भी एक अलग प्रकार का कंपन होता है। ये सारे कंपन न केवल मनुष्यों में, वरन् पशुओं एवं वृक्षों में भी भिन्न-भिन्न भाव-दशाओं में भिन्न-भिन्न तरह से पाये जाते हैं, –ऐसा जैव-वैज्ञानिकों और मनोवैज्ञानिकों ने परीक्षण द्वारा सिद्ध किया है।
उनका कहना है कि एक गमले में रखे पौधे के पास यदि कोई आदमी छुरा लेकर उस पौधे को काटने के भाव से जाता है, तो वह पौधा ठीक उसी तरह कंपित होता है, जिस तरह मनुष्य भयग्रस्त होने पर कंपित होता है। इस प्रयोग के विश्लेषण से यह सिद्ध होता है कि जब भयसंज्ञा के कारण उपस्थित होते हैं, तो प्राणी शारीरिक और मानसिक रूप से विचलित और कंपित हो जाता है। भयग्रस्त प्राणी हिंसात्मक-प्रवृत्तियों में लीन हो जाने से वह अपने अस्तित्व को भी भूल जाता
स्थानांगसूत्र के अनुसार, भय-उत्पत्ति के चार प्रमुख कारणों का उल्लेख पूर्व में किया जा चुका है, लेकिन आधुनिक मनोविज्ञान एवं व्यवहार की दृष्टि से भय-उत्पत्ति के निम्न कारण भी हो सकते हैं -
1. पूर्व जन्म के संस्कारों के कारण। 2. अज्ञान के कारण। 3. मिथ्या ज्ञान के कारण। 4. अहंकार के कारण।
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