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स्थानांगसूत्र में ही आगे प्रभु स्वयं कहते हैं कि -"दुक्खे केण कडे ? यह दुःख किसने पनाया ? समाधान करते हुए प्रभु कहते हैं –'सयं कडे माएवं' । स्वयं ने ही प्रमाद के कारण इस दुःख का निर्माण किया है, अर्थात् भय के जन्मदाता हम स्वयं हैं और उसका कारण है -हमारा प्रमाद । 'अन्नाणा जायते भयं ।' आदमी को अज्ञान के कारण ही दुःख होता है, क्योंकि अज्ञान ही असुरक्षा का भाव है।
सामान्य मनोविज्ञान में भय को एक प्रकार का संवेग कहा गया है। “संवेग से तात्पर्य एक ऐसी आत्मनिष्ठ अवस्था से होता है, जिसमें कुछ शारीरिक-उत्तेजना पैदा होती है, फिर जिसमें कुछ खास-खास प्रकार के व्यवहार होते हैं। भय एक ऐसी संवेगात्मक-स्थिति है जिसमें किसी ऐसी खतरनाक वस्तु या घटना के प्रति व्यक्ति को प्रतिक्रिया (Reaction) करना होती है, जिससे वह आसानी से छुटकारा नहीं पा सकता है। भय-संवेग (संज्ञा) शैशवावस्था से ही होता देखा गया है। प्रायः, छोटे बच्चे तीव्र आवाज, अंधेरे कमरे, पशु, एकान्त परिस्थिति आदि से डर जाते हैं। बड़े बच्चों में भी भय इन सभी परिस्थितियों के अलावा काल्पनिक बातों तथा कहानियों के काल्पनिक पात्रों से भी होता है। बच्चे भय-संवेग (संज्ञा) की अभिव्यक्ति अपनेआपको फर्नीचर आदि के पीछे छिपाकर, या फिर जोरों से चिल्लाकर, या रोकर करते हैं और बड़े बच्चे गुमसुम रहना, गलत आदतों को अपना लेना, आदि अनेक प्रकार से भय की अभिव्यक्ति करते हैं।
आहार, भय, मैथुन व परिग्रह आदि संज्ञाओं में आहार के बाद प्रमुख संज्ञा भय है। प्रत्येक व्यक्ति स्वयं से पूछकर देखे कि उसे किसी-न-किसी बात का डर है या नहीं ? भय अनेक प्रकार के हैं, जैसे – मृत्य का भय, बीमारी का भय, वियोग का भय, गरीबी का भय, समाज का भय आदि, साथ ही कोई रूठ न जाए, नाराज न हो जाए, नौकरी से निकाल न दे, अपमान न कर दे आदि का भी भय होता है। इस
4 स्थानांगसूत्र, 3/2
'आधुनिक सामान्य मनोविज्ञान, पृ. सं. 423
By emotion we mean a subjective feeling state involving psychological arousal. accompanied by characteristic behaviors' - Baron, Byrned (Kantowitz) Psychology - 1980 (P. 293)
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