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सूर्य के प्रकाश में केवल प्रकाश ही नहीं होता, अपितु कीटाणुनाशक तथा जीवनदायिनी-शक्ति भी होती है। सूर्य के प्रकाश से हमारे पाचन तंत्र का गहरा संबंध है। सूर्य की रोशनी से शरीर में रोग-प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है। भारतीय आयुर्वेद का अभिमत है कि शरीर में दो प्रमुख कमल होते हैं, हृदयकमल और नाभिकमल । जिस प्रकार कमल सूर्योदय के साथ खिलता है और सूर्यास्त के साथ बंद हो जाता है, उसी प्रकार जब तक सूर्य का प्रकाश रहता है, तब तक उसमें रहने वाली सूर्य-किरणों के प्रभाव से हमारा पाचनतंत्र भी ठीक काम करता है। सूर्य के अस्त होते ही उसकी गतिविधि मंद पड़ जाती है। सूर्यास्त होने के बाद भोजन करने से स्वास्थ्य पर बहुत प्रभाव पड़ता है, इसलिए रात्रिभोजन का त्याग करना चाहिए।
जिस प्रकार चूल्हे पर रखी हुई वस्तु को जब अग्नि की गर्मी मिलती है, तभी वह पकती है, उसी प्रकार हमारे आमाशय में जो भोजन हम डालते हैं वह भी पेट की उष्णता (जठराग्नि) के कारण और सूर्य की रोशनी के कारण ही पचता है।
हमें यह प्रत्यक्ष अनुभव है कि सूर्य के प्रकाश में जो विशेषता है, वह विद्युत के प्रकाश में नहीं है, चाहे वह कितना ही तीव्र और चमचमाता क्यों न हो। सूर्य की रोशनी में ही पौधे अपना भोजन बनाते हैं, जौहरी द्वारा हीरों का परीक्षण भी सूर्य की रोशनी में होता है, उसी प्रकार सूर्य के रहते भोजन करते हैं, तो वह स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है।
__जिस प्रकार प्राणवायु ऑक्सीजन (O) श्रम की थकान मिटाने के लिए आवश्यक है, उसी प्रकार प्राणवायु पाचन के लिए भी आवश्यक है। रात्रि में कार्बनडायऑक्साइड (CO2) की मात्रा अधिक बढ़ जाती है, जिससे रात्रि में भोजन का पाचन करने में अधिक श्रम करना पड़ता है, इसलिए रात्रिभोजन का त्याग करना चाहिए।
"हन्नाभिपद्मसंकोच चण्डरोचिरपायतः । । अतो नक्तं न भोक्तव्यं सूक्ष्मजीवादनादपि।। - योगशास्त्र, 3/60
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