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नही करता है, वह न तो किसी प्राणी से डरता है और न उन्हें डराता है। वह दीर्घायु, निरोगी और सुखी जीवन व्यतीत करता है। जिह्वा के क्षणिक स्वाद के लिए, या अपने पेट की पूर्ति के लिए निरपराध, मूक और अबोध प्राणियों की हत्या करना घोर पाप है, ऐसी हिंसक-वृत्ति के मनुष्यों को स्वप्न में भी सुख, शान्ति की प्राप्ति नहीं हो सकती। जो रस में, स्वाद में, आसक्त होता है, वह अकाल में ही विनाश को प्राप्त हो जाता है, जैसे – मांस के लोभ में फंसी मछली मच्छीमार के कांटों में फंसकर अपने प्राण गंवा देती है।
___ आचार्य मनु ने कहा है कि जीवों की हिंसा के बिना मांस उपलब्ध नहीं होता और जीवों का वध कभी स्वर्ग प्रदान नहीं करता, अतः मांस-भक्षण का त्याग अवश्यमेव करना चाहिए।92
हिंसा से पापकर्म का अनुबंध होता है, इसलिए हिंसक-व्यक्ति को स्वर्ग तो कदापि नहीं मिल सकता। उसे या तो इसी जन्म में उसका फल प्राप्त होता है, अथवा अगले जन्म में नरक और तिर्यंचगति के भयंकर कष्ट एवं वेदनाएं सहन करना पड़ती हैं। स्थानागसूत्र में भी मांसाहार करने वाले जीव को नरकगामी बताया
संत कबीरदासजी ने भी मांसाहार को अनुचित माना है और मांस का भक्षण करने वाले प्राणियों को नरकगामी कहा है।94
80 अघप्य सर्वभतानाम, यष्यान्नीरूपजः सखी।
भवत्य भक्ष्यन्मांस, दयावान् प्राणिनामीह। - महाभारत, अनुशासन पर्व 8" उत्तराध्ययनसूत्र - अध्ययन 32/62 82 समुत्पत्ति च मांसस्य, बन्धबन्धो च देहिनाम् प्रसमीक्ष्य निवर्तेत सर्व मांसस्य भक्षणात्।। - मनुस्मृति 5/49 न कृत्वा प्राणिनां हिंसा मांसमुत्पद्यते क्वचित। न व प्राणिवधः स्वर्गस्तस्मान्मांस विवर्जयेत।। - मनुस्मृति, 5/48 चउहि ठोणेहि जीवा नेरइयाउयत्ताए कम्मं पकयेति, तं जहा। महारंभताए, महापरिग्गहयाए पंचिदियवहेणं, कुणिमाहारेणं ।। स्थानांगसूत्र - 4/4/628 मांस मछरिया खात है सरापान से हेत वे नर नरकहि जाएंगे, मात-पिता समेत ।। कबीर।।
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