________________
इसके अतिरिक्त अब तो वैज्ञानिक-खोज से यह निश्चित हो गया है कि सूर्य के प्रकाश में Infra-Red तथा Ultra-Violet दो प्रकार की किरणें होती हैं, इनमें से एक प्रकार की किरण वातावरण में उपस्थित सूक्ष्म जीवाणुओं का विनाश करती है, यह लाभ रात्रि के समय नहीं मिल पाता है, अतः वैज्ञानिक दृष्टि से भी रात्रिभोजन उचित नहीं है।
___ जो रात्रि में भोजन करते हैं, उन्हें जैसी चाहिए, वैसी गहरी निद्रा नहीं आती, वे या तो रात्रि में इधर-उधर करवटें बदलते रहते हैं, या स्वप्न संसार में गोते लगाते हैं। निद्रा की इस अस्त-व्यस्तता का मूल कारण पेट में पड़ा हुआ आहार है, क्योंकि भोजन पचाने के लिए शरीर को अधिक श्रम करना पड़ता है। शरीर की सारी ऊर्जा भोजन को पचाने में ही लगती है, इस कारण गहरी नींद नहीं आती है। उठते समय उसके चेहरे पर भी तरोताजगी नहीं होती है। बहुत से जन रात्रि में ड्रायफ्रुट आदि खाते हैं, परन्तु सूखे पदार्थों का आहार भी पाचन के लिए वैसा ही हानिकारक है, जैसा अन्य पदार्थों का आहार । रात्रि में देर से आहार करने पर उसके पाचन हेतु बार-बार पानी पीना होता है। बार-बार पानी पीने पर मूत्र-विसर्जन हेतु बार-बार उठना होता है, इससे भी गहरी और पूर्ण निद्रा नहीं हो पाती है, अतः दिन भर अन्यमनस्कता बनी रहती है। अतएव रात्रिभोजन त्याज्य है।
रात्रिभोजन धार्मिक, आध्यात्मिक और स्वास्थ्य -सभी दृष्टियों से हानिप्रद है। अतीत-काल से लेकर वर्तमान युग के वैज्ञानिक भी रात्रिभोजन को उचित नहीं मानते। भले ही परिस्थितिवश उन्हें करना पड़ता है। आधुनिक सभ्यता में लोग 'डिनर' के नाम पर रात्रिभोजन को महत्त्व देते हैं, शादी, पार्टी और बड़े-बड़े कार्यक्रम में रात्रिभोज रखते हैं, पर यह आध्यात्म और शारीरिक दोनों दृष्टियों से अनुचित है। जैन, बौद्ध और वैदिक परम्परा के ग्रन्थों में ही नहीं, चरक और सुश्रुत जैसे आयुर्वेद के ग्रन्थों में भी रात्रिभोजन से होने वाली हानियों का उल्लेख है, अतः जैनदर्शन का कहना है कि साधक को रात्रिभोजन का त्याग करना चाहिए।
____74 जैन आचार : सिद्धांत और स्वरूप, पृ. 872-73
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org