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इसी प्रकार, सभी धर्म-प्रवर्त्तक दार्शनिक और चिन्तकों ने मदिरापान की निन्दा की है और उसे पाप का मूल माना है, इसलिए मदिरा को अभक्ष्य जानकर उसका त्याग करना चाहिए ।
मधु (शहद) मधुमक्खियों की जूठन, उगलन या वमन है । मधुमक्खियों के छत्तों में अनेक सम्मुर्च्छन अण्डे रहते हैं। वे सब कोमल शरीर वाले होते हैं जो शहद निकालते समय मर जाते हैं और उनके शरीर का रस निकल जाता है, तब शहद भी मांस के समान अभक्ष्य हो जाता है। शहद में निरंतर सूक्ष्म निगोद या जीव जिनका शरीर भी रसरूप होता है, ऐसे जीव निरंतर उत्पन्न होते रहते हैं, जो स्पर्श करने मात्र से मरण को प्राप्त हो जाते हैं । औषधि के साथ, अथवा औषधि के रूप में,
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शहद का प्रयोग करने पर भी जीवों की विराधनारूप हिंसा अवश्य होती है। शहद खाने पर रसनाइन्द्रिय की लालसा एवं कामुकता बढ़ जाती है। इस प्रकार, भावविकृति के कारण भी शहद अभक्ष्य है, इसलिए अहिंसा-धर्म के धारक को मधु का प्रयोग कभी नहीं करना चाहिए 16
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बासी रोटी, पूड़ी, ब्रेड, पापड़, मालपुआ, खीर, दाल, भात आदि खाद्य-पदार्थों में जब सफेद फफूंद आ जाती है, तब उनमें एकेन्द्रिय जीवों की उत्पत्ति हो जाने से वे अभक्ष्य हो जाती हैं । मक्खन, जो 48 मिनट पूर्व निकाला गया है, उसमें भी असंख्यात जीवों की उत्पत्ति हो जाती है । अतः ऐसे पदार्थ सेवन करने योग्य नहीं है । मक्खन को छाछ में से निकालकर, तुरंत तपाकर घी बना लेना चाहिए, नहीं तो वह मक्खन मांस खाने के समान माना गया है, क्योंकि उसमें जीवोत्पत्ति (फरमन्टेन्शन) होता है ।
किसी भी पदार्थ का अचार चाहे आम का हो, अथवा नींबू का, अथवा अन्य किसी भी प्रकार का, जो नमक, मिर्च, जीरा, धनिया, राई, अजवाइन, सरसों आदि
46 भक्षणे भवति हिंसा नित्यमुद्भवंति यज्जीवराशिः स्पर्शनेऽपि मृयन्ते सूक्ष्मनिगोदरसजदेहिनः । । 29|| अगदेऽपि न सेवितव्यः हिंसाभवति सेवन काले भावेविकृतारवलु प्रदातासुखमाभाति कदा | 30 ।।
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. ( उपासकाध्ययन, भाग - 4, गाथा - 29, 30 )
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