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डालकर तैयार किया है, 24 घन्टे के बाद उसमें भी अनेक जीवोत्पत्ति हो जाती है, तब उसमें विशेष स्वाद आने लगता है, अचार या मुरब्बा जितना पुराना होता जाता है, उतना ही रुचिकर लगने लगता है, चूंकि विभिन्न प्रकार की असंख्यात जीवराशि उसमें उत्पन्न होती रहती हैं और उसी में मरण को प्राप्त होती रहती हैं, अतः अहिंसक साधक को इनका सेवन नहीं करना चाहिए। इसी प्रकार से, कांजी-बड़ा आदि भी असंख्यात जीवराशियों का पिंड होने से अभक्ष्य है। वस्तुतः, वे सभी वस्तुएं जिनमें फफूंद (खमीर) या फरमन्टेशन स्वभावतः उत्पन्न होती हैं, अभक्ष्य हैं।
बड़, पीपल, उंबर, गूलर और अंजीर -ये पांच उदम्बर फल कहे गये हैं, इन फलों के भीतर त्रसकायिक असंख्यात जीव निवास करते हैं। इन फलों को तोड़ने पर ये जीव सैन्यदल के समान अन्दर से निकलकर बाहर आते दिखाई देते हैं, वे प्राणी विकलेन्द्रिय होते हैं। इन फलों को सुखाकर खाने पर, अथवा गीले ही पक्व या अर्द्धपक्व, कैसे भी खाने पर वे जीव मरण को तो प्राप्त होते ही हैं, परन्तु इससे द्रव्यहिंसा का दोष भी लगता है। इन फलों को तोड़कर देखने पर इन्हें कोई भी नहीं खा सकता है, क्योंकि असंख्यात जीव राशि उनमें से निकलने लगती है और उनमें प्रतिसमय जीव उत्पन्न होते और मरण को प्राप्त होते रहते हैं। उन मृतक जीवों का कलेवर भी उन्हीं में रहता है। अतः, इन पांच प्रकार के फलों को भी मांसभक्षण सदृश अभक्ष्य जानकर इनका त्याग करना चाहिए।48
बहुबीज, बैंगन, अज्ञात फल, तुच्छ फल एवं अनन्तकाय भी अभक्ष्य हैं। जिसमें बीज अधिक हों, जैसे -खसखस, अंजीर आदि, इनमें प्रतिबीज एक जीव होने से इनकों खाना अधिक जीवहिंसा का कारण है। बैंगन बहुबीज, निद्राकारक व कामोद्दीपक होने से अभक्ष्य है। जिन पुष्प-फलों को कोई न जानता हो, उन्हें भी
47 रोहिकौदनापुपं पुष्पित नवनीतं च।
संघानकंचकाचिंका मधुमिवैव दोषानि ।। (उपासकाध्ययन, अध्याय-4, गा. 31) 48 निग्रोध पिप्पल फल्गु उदम्बर पाकर फलानि च भक्षणे। .
प्रभवति नित्य हिंसा जीवानां कर्मकोषं च ।। 32 ।। फलानां गर्भे खलु जातं मृतं नित्य त्रसजीवाः । आलोक्यते कलेवर मास्वादनेऽपि भवति हिंसा ।। 33 || - (उपासकाध्ययन, अध्याय-4, गा-32, 33)
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