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106. महाशिलाकण्टक
107. मार
108. मुण्ड
109. मृषावाद
110. यतनापूर्वक
111
112. रथमूसल संग्राम
113. लेश्या
114. वसति
Xxxx • पारिभाषिक शब्दावली
: मगधराज अजातशत्रु ने नौ मल्लकि, नौ लिच्छवि, काशी, कोशल तथा उनके अठारह गणराजाओं की संयुक्त सेना को इस नए युद्ध उपकरण से हराया जिसमें रथों से विशाल नुकीले शिलाखण्ड शत्रु सेना पर फेंके गए। इस विधि से चौरासी लाख की शत्रु सेना का संहार किया। : तपस्या में विघ्न डालने वाली दुष्टात्मा । : केशलुंचित मुण्डित श्रमण।
: असत्य ।
: सावधानीपूर्वक, यत्न से।
जैन परम्परा में यति साधु अथवा तपस्वी के लिए प्रयुक्त हुआ है। भगवद्गीता के अनुसार यह योग प्रवृत्त, कामक्रोध रहित, संयमचित वीतरागात्मा है।
: मगधराज अजातशत्रु का मल्लकि और लिच्छवियों की संयुक्त सेना से युद्ध हुआ था । वैशालीराज चेटक संयुक्त सेना का नायक था। अजातशत्रु जिसे जैनग्रन्थ कुणिक कहते हैं, चतुरंगिणी सेना के साथ आया और ऐसा युद्धास्त्र बनवाकर लाया जिसके रथ में तीव्र वेग से मूसल घूमते थे। पदाति सेना पर इस रथ को दौड़ा कर उसने छियानबे लाख व्यक्तियों के रक्त से युद्धभूमि को सींचकर लाल कर दिया।
: लिम्पति इति लेश्या अर्थात लीपने वाली, रंगने वाली वृत्ति लेश्या है। मनुष्य चेतना की तरंग या चित्तवृत्ति का नाम जैनधर्म में लेश्या है । चित्त के विचार, वासनाएं, कामनाएं, लोभ, अपेक्षाएं ये सभी लेश्या हैं। भगवान महावीर ने इनका वर्गीकरण रंग के आधार पर किया है।
: रहने का स्थान,
उपाश्रय ।