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66. नैष्कर्म्य 67. नैष्ठिक 68. नैषेधिकी
69. पद्मासन अथवा पर्यंकासन
70. पदविभाग
71. परमात्मा
72. पर्युषण
73. पर्याय स्थविर 74. परिकुंचना 75. परिभोगैषणा
76. परिमाण व्रत 77. परिवर्तना 78. परीषह 79. परिहार
80. प्ररूपणा
81. प्रतिक्रमण
82. प्रतिलेखना
83. प्रतिषेवणा
84. प्रत्याख्यान
85 प्रतिमा
xxviii • पारिभाषिक शब्दावली
: जो कर्माधारित न हो ।
: आचार में उच्च अध्यात्म प्राप्त गृहस्थ सदाचारी | : साधु उपाश्रय से बाहर जाकर लौटे और यदि उस अन्तराल में कुछ अकरणीय हो गया हो तो उससे निवृत्त होने की घोषणा करे। उपाश्रय वापसी की घोषणा नैषेधिकी है।
: बैठी हुई योग मुद्रा जिसमें योगी ध्यानलीन है तथा दृष्टि नासाग्र पर केन्द्रित है।
: आचारात्मक पक्ष
: सार्वभौम समष्टि चेतना ।
वर्षाकाल के चार मासों में गमनागमन निषेध कर एक स्थान पर वास करना तथा समय को स्वाध्याय, धर्म प्रवचन तथा ग्रन्थ लेखन में लगाना ।
वरिष्ठ श्रमण।
: दोष छुपाना।
: अधिक भिक्षा एकत्र करने की दृष्टि से लगने वाले चार दोष जैसे— बताई गई मात्रा से अधिक भिक्षा स्वीकार कर लेना और उसके रुचिकर भाग को छांटकर अलग कर लेना।
: जीवन पर्यन्त के लिए त्याग देना । : पुनरावर्तन।
: कष्ट सहने को परीषह कहते हैं।
: प्रायश्चित की विधि जिसमें व्रत, उपवास, अनशन तथा कठिन योगासन (कायोत्सर्ग) शामिल रहते थे।
: व्याख्या ।
: पाप परिहार के निमित्त गुरु के समक्ष पाप स्वीकृति तथा दण्ड ग्रहण के पश्चात् पुनर्दीक्षा ।
: निरीक्षण |
: अकृत्य ।
: युक्तिपूर्वक पर- सिद्धान्त का खण्डन तथा स्व-सिद्धान्त का मण्डन । जैनदर्शन में प्रत्याख्यान का अर्थ है भविष्य में
पापमय प्रवृत्तियों से बचने का पूर्ण दृढ़ निश्चय । : आध्यात्मिक प्रतिमान ।