________________ उत्सर्ग। पूजनीय पिताजी, " ज्ञानक्रियाभ्यां मोक्षः " इस सिद्धान्त को मद्देनजर रख कर, आपने सारे जीवन में इन दोनों की आराधना की और जीवन को हीन केवल पवित्र बनाया, किन्तु हम जैसे अज्ञानियों एवं क्रियाकांड में अकुशल जीवों को धार्मिक संस्कार वालेभी बनाये। आपकी इस असाधारण उपकारिता का ऋण हम किस प्रकार चुका सकते हैं ? / तथापि, स्वर्गीय जगत्पूज्य शास्त्रविशारदजैनाचार्य श्रीविजयधर्मसूरि महाराज का बनाया हुआ यह अत्युपकारी ग्रंथ, आपही की स्मृति में छपवाकर, आपकी स्वर्गीय आत्मा के सम्मुख पुष्परूप उत्सर्ग करता हूं / स्वीकारिये, और कृतार्थ कीनिये। आपका, आपके वियोग से दुःखी अमीचंद.