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[ ४ ] वेणीप्रसाद जी एम० ए० को धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकते। आपने इस पुस्तक के लिखने में जो सहायता दी है, उसके लिये हम आपके चिर कृतज्ञ रहेंगे। यह कहना अत्युक्ति नहीं है कि बिना आपकी सहायता के इस पुस्तक का लिखा जाना असंभव था। अनेक कार्यों के रहते हुए भी आपने यह पुस्तक पढ़कर इसमें कई स्थलों पर संशोधन और परिवर्तन किये हैं। इसके लिये हम आपको जितना धन्यवाद दें, थोड़ा है । अपने मित्र बा० नरेंद्रदेव एम० ए०, वाइस प्रिंसिपल, काशी विद्यापीठ, को भी हम धन्यवाद देते हैं। आपसे भी हमें इस पुस्तक के लिखने में बड़ी सहायता और उत्साह मिला है।
लेखक ।
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