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जन साधाअधिकतर
[ २ ] इतिहास में, इसलिये बौद्ध काल कहलाता है कि इस काल में अन्य धर्मों की अपेक्षा बौद्ध धर्म की प्रधानता थी। इस काल में जितने बड़े बड़े राजा और सम्राट् हुए, वे प्रायः बौद्ध धर्मावलंबी ही थे। इस काल के जितने शिलालेख, मंदिरों और स्तूपों के जितने भग्नावशेष और जितनी मूर्तियाँ मिली हैं, वे अधिकतर बौद्ध धर्म संबंधी हैं। इस काल के शिलालेखों में जितने व्यक्तियों के नाम आये हैं, जितने देवी-देवताओं और दोनों के उल्लेख हुए हैं, उनमें से अधिकतर बौद्ध धर्म संबंधी हैं। इस काल के अधिकतर शिलालेख ब्राह्मणों की भाषा संस्कृत में नहीं, बल्कि जन साधारण की भाषा प्राकृत में हैं । पर इसके बाद गुप्त काल से लेकर अधिकतर शिलालेख संस्कृत में ही मिलते हैं । गुप्त काल के प्रारंभ से शिलालेखों में ब्राह्मणों, हिन्दू देवी-देवताओं, हिन्दू मंदिरों और यज्ञों का ही अधिकतर उल्लेख आता है। यहाँ तक कि पाँचवीं शताब्दी के तीन-चौथाई शिलालेख हिंदू धर्म संबंधी ही हैं। पर इससे यह न समझ लेना चाहिए कि बौद्ध काल में हिंदू या ब्राह्मण धर्म बिलकुल लुप्त हो गया था। उस समय भी यज्ञ
आदि होते थे, पर अधिक नहीं। हिंदू देवी-देवताओं की पूजा भी प्रचलित थी, पर पहले की तरह नहीं। इसका प्रमाण पुष्यमित्र के अश्वमेध यज्ञ, बेसनगर के गरुड़-ध्वज, कैडझाइसिज द्वितीय तथा वासुदेव के सिक्कों और वासिष्क के मथुरावाले स्तूप-स्तंभ से मिलता है। तात्पर्य यह कि बौद्ध धर्म की प्रधानता होने के कारण ही यह काल “बौद्ध काल" के नाम से पुकारा जाता है।
इस काल का इतिहास दो प्रधान भागों में बाँटा जा सकता है। एक भाग में बुद्ध के जन्म-समय से लेकर मौर्य साम्राज्य के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
में ब्राह्मणा। उल्लेख आ