________________
यह जो जाग गया है, क्या करेगा? यह इस आदमी को भी जगाने की कोशिश करेगा। इसके दुख को हटाने की नहीं इसको जगाने की। फर्क साफ समझ लेना। जब बुद्ध तुम्हें दुखी देखते हैं, तो तुम्हारे दुख को मान नहीं सकते कि है; क्योंकि वे तो जानते हैं दुख हो ही नहीं सकता, भ्रांति है। तुम्हें जगाने की कोशिश करते हैं। तुम्हें भागते देख कर कि तुम रस्सी को सांप समझ कर भाग रहे हो, वे एक दीया ले आते हैं। वे कहते हैं, जरा रुको तो, जरा इस सांप को गौर से तो देखें, है भी? उस प्रकाश में रस्सी तुम्हें भी दिखाई पड़ जाती है, तुम भी हंसने लगते हो।
ज्ञानी पुरुष तुम्हारे सुख-दुख से जरा भी प्रभावित नहीं होता। और जो प्रभावित होता हो, वह ज्ञानी नहीं है। यद्यपि तुम्हारे सुख-दुख से दया उसे जरूर आती है। कभी-कभी हंसता भी है-देख कर सपने का बल, व्यर्थ का बल; देख कर झूठ का बल!
ऐसा ही समझो, एक छोटा बच्चा है, और उसकी गुड़िया की टांग टूट गयी और वह रो रहा है। तुम क्या करते हो? रोते हो उसके पास बैठ कर? तुम भी दुखी होते, आंसू झारते हो? तुम उससे कहते हो कि 'बेटा, नासमझ, यह गुड़िया ही है! टूटने को ही थी। इसमें कोई प्राण थोड़े ही हैं कि तू परेशान हो रहा है? यह टांग कोई असली टांग थोड़े ही है।' हालांकि तुम्हारी समझ की बातें शायद बेटे को समझ न भी आयें। लेकिन तुम भी जानते हो, यह भी बड़ा होगा कल, थोड़ी प्रौढ़ता आयेगी, गुड्डा-गुड्डी भूल जायेगा। फेंक देगा कहीं फिर, लौट कर देखेगा भी नहीं। अभी बचपना है, तो गुड्डा-गुड़ियों से खेल रहा है।
ज्ञानी पुरुष तुम्हें सुख-दुख में डूबा देख कर जानता है कि तुम अभी भी सोये सपना देख रहे हो। छाया मत छूना मन
होगा दुख दूना मन यश है न वैभव है मान है न सरमाया जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन छाया मत छूना मन
होगा दुख दूना मन। तुम्हारे सब दुख छाया, झूठे हैं, माया! बुद्धपुरुष को समाधिस्थ पुरुष को जो यथार्थ है, दिखाई पड़ता है। जिसे अपना यथार्थ दिखाई पड़ गया, उसे सबका यथार्थ दिखाई पड़ जाता है। फिर भी तुम पर दया करता है-दया करता है कि तुम अभी भी सोये हो। दया करता है, क्योंकि कभी वह भी सोया था। और जानता है कि तुम्हारी पीडा गहन है, झूठी है, फिर भी गहन है। जानता है, तुम तड़प रहे हो; माना कि जिससे तुम तड़प रहे हो वह है नहीं। क्योंकि वह भी तड़पा है। वह भी कभी ऐसा ही