Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 417
________________ कारण नहीं | बर्नार्ड शा के पिता की मृत्यु हुई तो बर्नार्ड शा ने अपने मित्रों को कहा कि आज मैं बहुत इस डरा हुआ हो गया हूं । तब तो उसकी उम्र भी साठ के पार हो चुकी थी। उन्होंने कहा 'डरे-डरे हो गये, मतलब क्या?' उन्होंने कहा ' आज पिता साथ नहीं, यद्यपि वर्षों से हम साथ न थे, पिता अपने गांव पर थे, मैं यहां था। लेकिन फिर भी पिता थे तो मैं बच्चा था, एक भरोसा था कि कोई आगे है। आज पिता चल बसे, आज मैं अकेला रह गया। आज डर लगता है। आज कुछ भी करूंगा तो मेरा ही जुम्मा है। आज कुछ भी करूंगा तो भूल-चूक मेरी है। आज कोई डांटने - डपटने वाला न रहा। आज कोई चिंता करने वाला न रहा। आज बिलकुल अकेला हो गया हूं । नास्तिक अशांत हो जाता है, क्योंकि कोई परमात्मा नहीं! तुम नास्तिक की पीड़ा समझो, उसकी तपश्चर्या बड़ी है! वह नरक भोग लेता है। क्योंकि कोई नहीं है, खुद ही को सब सम्हालना है। और इतना विराट सब जाल है और इस विराट जाल में अकेला पड जाता है। और सब तरफ संघर्ष ही संघर्ष है, काटे ही कांटे हैं, उलझनें ही उलझनें हैं और कुछ सुलझाये नहीं सुलझता। बात इतनी बड़ी है, हमारे सुलझाये सुलझेगा भी कैसे ! आस्तिक परम सौभाग्यशाली है। वह कहता है तुम ' बनाये, तुम 'जानो, तुम 'चलाओ। तुमने मुझे बनाया, तुम्हीं मुझे उठा लोगे एक दिन । तुम्हीं मेरी सांसों में तुम्हीं मेरी धड़कन में। मैं क्यों चिंता करूं? 'जो आंख के ढंकने और खोलने के व्यापार से दुखी होता है, उस आलसी - शिरोमणि का ही सुख है । ' आलस्य की ऐसी महिमा ! अर्थ समझ लेना । तुम्हारे आलस्य की बात नहीं हो रही है। तुम तो अपने आलस्य में भी सिर्फ जी चुराते हो, समर्पण थोड़े ही है। तुम्हारे आलस्य में कर्ता - भाव थोड़े ही मिटता है। यह इसलिए शिरोमणि शब्द का उपयोग किया। आलसियों में शिरोमणि वह है जिसने कर्म नहीं छोड़ा, कर्ता भी छोड़ दिया। अगर कर्म ही छोड़ा तो सिर्फ आलसी, वह शिरोमणि नहीं | कर्म तो छोड़ कर कई लोग बैठ जाते हैं। पत्नी कमाती है तो पति घर में बैठ गये, आलसी हो गये। मगर चिंतायें हजार तरह की करते रहते हैं बैठे-बैठे - ऐसा होगा, वैसा होगा, होगा कि नहीं होगा! सच तो यह है कि काम न करने वाले लोग ज्यादा चिंता करते हैं काम करने वालों की बजाय, क्योंकि काम करने वाला तो उलझा है। फुरसत कहां! आलसी तो बैठा है, कोई काम नहीं! तो वह चिंता ही करता है। बुढ़े देखे, बहुत चिंतित हो जाते हैं अब कोई काम नहीं है उन पर । काम था तब तक तो निश्चित थे, लगे थे, जुटे थे, जुते थे बैलगाड़ी में, फुरसत कहा थी! अब खाली बैठे हैं! रस्किन ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि मैंने जितने आदमी सुखी देखे, वे वे ही लोग थे जो इतनी बुरी तरह उलझे थे काम में कि उन्हें फुरसत ही न थी जानने की कि सुखी हैं कि दुखी हैं। उलझा रहता है आदमी तो पता ही नहीं चलता कि सुखी हैं कि दुखी! किसी तरह पिटे – कुटे

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