Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 419
________________ जिसकी सरल चित्त - दशा हो गई, उसका सबके प्रति उदासीन भाव हो जाता है। अब मोक्ष भी सामने पड़ा हो तो भी उसे आकांक्षा नहीं होती। और की तो बात ही क्या, स्वर्ग भी उसे निमंत्रण नहीं देता अब। और जिसके लिए कोई वासना का निमंत्रण नहीं है, वही मुक्त है, वही मोक्ष को उपलब्ध है । 'विषय का द्वेषी विरक्त है। विषय का लोभी रागी है। और जो ग्रहण और त्याग दोनों से रहित है, वह न विरक्त है न रागवान है।' इर्द कृतमिद नेति द्वंद्वैर्मुक्तं यदा मनः । धर्मार्थकाममोक्षेगु निरपेक्ष तदाभवेत ।। और जो धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष सभी से शांत और मुक्त हो गया, वही वीतराग है। यहां तीन शब्द समझ लेने चाहिए। एक है भोगी, दूसरा है योगी और तीसरा है दोनों के पार । एक है आसक्त, एक है विरक्त, और एक है दोनों के पार । विरक्तो विषयद्वेष्टा- वह जो विरक्त है, उसकी विषयों में घृणा हो गई है। रागी विषयलोलुप - और वह जो रागी है, भोगी है, वह लोलुप है विषय के लिए। ग्रहमोक्षविहीनस्तु न विरक्तो न रागवान् । लेकिन परमदशा तो वही है जहां न राग रह गया न विराग; न तो प्रेम रहा वस्तुओं के प्रति, न घृणा। ऐसी वीतराग दशा परम अवस्था है। वही परमहंस दशा है। परम समाधि ! इसे हम समझें। किसी का धन में मोह है; वह पागल है धन के लिए इकट्ठा करता जाता है बिना फिक्र किए कि किसलिए इकट्ठा कर रहा है, क्या इसका होगा ! यह सब चिंता भी नहीं है उसे । बस धन इकट्ठा कर रहा है। एक पागलपन है। फिर एक दिन जागा, लगा कि यह तो जीवन गंवाया; इससे तो कुछ पाया नहीं; धन तो इकट्ठा हो गया, मैं तो निर्धन का निर्धन रह गया । छोड़ दिया धन । भागने लगा छोड़ कर । अब उसने दूसरी उल्टी दिशा पकड़ ली। अब अगर उसके हाथ में पैसा रखो तो वह ऐसे छोड़ कर खड़ा हो जाता है चिल्ला कर कि जैसे बिच्छू रख दिया। अब वह पैसे की तरफ देखता नहीं। अब वह कहता है : ' धन, धन तो पाप है! बचो, कामिनी - कांचन से बचो! भागते रहो!' अब उसने दूसरी दौड़ शुरू कर दी। यह विरक्त तो हो गया, आसक्त न रहा। जो संबंध प्रेम का था, वह घृणा में बदल लिया। लेकिन संबंध जारी है। घृणा का भी संबंध होता है। प्रेम का भी संबंध होता है। जिसके तुम मित्र हो, उससे तो तुम जुड़े ही हो; जिससे तुम शत्रुता रखते हो, उससे भी जुड़े हो । अष्टावक्र कहते हैं: ये दोनों बंधे हैं। एक पाप से बंधा होगा, एक पुण्य से बंधा है; मगर बंधे हैं। एक की जंजीरें लोहे की हैं, एक की सोने की हैं। मगर जंजीरें दोनों के ऊपर हैं। और ध्यान रखना कभी-कभी सोने की जंजीरें ज्यादा खतरनाक

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