Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 416
________________ कहता है। यह अपने से हो रहा है। यह तुम कर नहीं रहे हो। धार्मिक इसको कहता है प्रभु कर रहा है। श्वास तुम थोड़े ही ले रहे हो, चल रही है। इसलिए तो तुम सो जाते हो, तब भी चलती रहती है, नहीं तो किसी दिन भूल गये नींद में तो बस.. सुबह फिर न उठे। यह तुम पर छोड़ा ही नहीं है। तुम बेहोश भी पड़े रहो तो भी श्वास चलती रहती है, प्रभु लेता रहता है। जीवन का जो भी महत्वपूर्ण है, तुम पर कहां छोड़ा है! जन्म तुमसे पूछा था कि लेना चाहते हो? जवानी तुमसे पूछी थी कि अब जवान होने की इच्छा है या नहीं न जन्म हुआ बचपन हुआ, जवानी आई, हजार-हजार वासनाएं उठीं-तुमसे किसी ने पूछा नहीं कि चाहते भी हो कि नहीं? सब हुआ। बुढ़ापा आ गया मौत आने लगी, मौत भी आ जायेगी। सब हो रहा है। इस होने में काश तुम अपने को बीच में न डालो तो कैसी अपूर्व शांति न फल जाये! इस होने में तुम कर्ता बनते हो, इससे अशांत हो जाते हो। तुम जितना ही सोचते हो, मुझे करना है, उतनी उलझन बढ़ती है, क्योंकि करने को इतना है! अब तुम जरा सोचो, तुम भोजन कर लेते हो, फिर अगर तुम्हें पचाना भी हो.। गले के नीचे उतरा कि तुम भूले। और जिसको नहीं भूलता उसका पेट खराब हो जाता है। तुम एक दिन प्रयोग करके देखो, चौबीस घंटे कोशिश करो। भोजन कर लिया, अब याद रखो कि पच रहा है कि नहीं, पक्वाशय में पहुंचा कि आमाशय में पहुंचा कि कहां गया क्या हो रहा है भीतर! जरा खयाल रखो, पगला जाओगे और पेट खराब हो जायेगा अलग। दूसरे दिन तुम पाओगे गड़बड़ी हो गई, डायरिया हो गया कि कब्जियत हो गई, कि पेट में दर्द उठ आया। तुम तो जान कर हैरान होओगे कि जब उनादमी मर जाता है, तब भी पेट पचाने का काम चौबीस घंटे तक करता रहता है। चौबीस घंटे का मौका मान कर चलता है कि शायद लौट आये, क्या पता! चौबीस घंटा पेट का काम जारी रहता है। सांस बंद हो जाती है। मस्तिष्क तो चार मिनिट के बाद समाप्त हो जाता है। इधर श्वास बंद हुई उधर मस्तिष्क चार मिनिट के भीतर समाप्त हो गया। फिर उसको लौटाया नहीं जा सकता। इसलिए जो लोग अचानक हृदय के धक्के से मरते हैं, अगर चार मिनिट के भीतर जिला लिए जायें तो ही जिलाये जा सकते हैं, अन्यथा गये तो गये। क्योंकि फिर तब तक चार मिनिट के बाद मस्तिष्क की स्मृति डावांडोल हो गई; मस्तिष्क के तंतु बहुत छोटे हैं, वे टूट गये। मस्तिष्क बहुत कमजोर है। लेकिन पेट की बड़ी हिम्मत है। चौबीस घंटे बाद भी पेट अपना काम जारी रखता है, पचाता रहता है, रस पहुंचाता रहता है कि क्या पता! तुम रात सो जाते हो, तब भी पेट पचाता रहता है। ॥ में पड़े हुए आदमी महीनों पड़े रहते बेहोशी में, तब भी पेट पचाता रहता है। मर जाने पर भी चौबीस घंटे तक पचाता है। तुम पर नहीं छोड़ा है। कोई विराट हाथ सब सम्हाले हुए है। तुम जरा देखो, इन हाथों को जरा पहचानो! कोई विराट हाथ तुम्हारे पीछे खड़े हैं! तुम नाहक परेशान हुए जा रहे हो। तुम्हारी हालत वैसी है जैसे कि एक छोटा बच्चा अपने बाप के साथ जा रहा है और परेशान हो रहा है। उसे परेशान होने की कोई जरूरत ही नहीं। बाप साथ है, परेशानी का कोई

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