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समर्पित मत हो त्वचा को स्पर्श गहरे मात्र इससे भी श्रेष्ठतर मूर्धन्य सुख जल बेड़ियों के ऊपर कहीं कहीं गहरे ठहर कर आधार, मूलाधार जीवन हर नये दिन की निकटता आत्मा विस्तार सूर्योदय! एक अंजुली फूल
जल से जलधि तक अभिराम! एक ही फैला है। छोटी-सी बूंद में भी वही है, बड़े-से सागर में भी वही है। छोटे-से दीये में भी वही है, बड़े-से सूरज में भी वही है। कहे गये शब्दों में भी वही है, अनकहे गये शब्दों में भी वही है। आधे उच्चारित शब्दों में भी वही है।
मंत्र का यही अर्थ है : अद्धोंच्चारित शब्द। पूरा उच्चार नहीं कर पाते, क्योंकि वह इतना बड़ा है, शब्द में समाता नहीं। बिना उच्चार किए भी नहीं रह पाते, क्योंकि वह इतना प्रीतिकर है-बार-बार मन उच्चार करने का होता है। इसका नाम मंत्र। मंत्र का अर्थ है : बिना बुलाए नहीं रहा जाता; हालांकि शब्दों से तुम्हें बुलाया भी नहीं जाता। अपनी असमर्थता है, इसलिए मंत्र।
माध्यम शब्द अद्धोंच्चारित जीवन धन्य है
आभार, फिर आभार! एक को देखो तो आभार ही आभार फैल जाएगा। अनेक को देखो तो अशांति ही अशांति। तुम धार्मिक आदमी की कसौटी यह बना लो : जिस आदमी के जीवन में आभार हो, वह आदमी धार्मिक। जिसके जीवन में शिकायत हो, वह अधार्मिक। तब तुम जरा मुश्किल में पड़ोगे। अगर मंदिर में जाकर खड़े हो कर देखोगे आते आराधकों को तो अधिक को तो तुम शिकायत करते पाओगे; धन्यवाद देने तो शायद ही कोई आता है। कोई कहता है, बच्चे को नौकरी नहीं लगी; कोई कहता है, पत्नी बीमार है, कोई कहता है कि बेईमान तो बढ़े जा रहे हैं, हम ईमानदारों का क्या? तुम जरा लोगों के भीतर झांक कर देखना, सब शिकायत करते चले आ रहे हैं। सब मांगते चले आ रहे हैं।
और यह अधार्मिक आदमी का लक्षण है : असंतोष। शिकायत, मांग-अधार्मिक आदमी का लक्षण है। स्वभावत: अधार्मिक अशांत भी होगा।
आभार ही आभार! फिर-फिर आभार! तुम्हें जितना मिला है, तुम्हें प्रतिपल इतना मिल रहा है, दवार-दवार रंध्र -रंध्र से फूट कर इतना प्रकाश आ रहा है, सब तरफ से परमात्मा ने तुम्हें घेरा