Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 390
________________ में, और पता नहीं यह क्या उलटा-सीधा करना करवाने लगे! रात भर सम्राट सो न सका। लेकिन फिर उसको आकर्षण भी मालूम होता था इस आदमी में, इसमें थी तो कुछ खूबी! इसके पास कुछ तरंग थी, कोई ज्योति थी । इसके पास ही जाते से कुछ प्रफुल्लता प्रगट होती थी, कुछ उत्सव आने लगता था। तो सोचा क्या करेगा, बहुत-से बहुत दो चार डंडे मारेगा, मगर यह कोशिश करके देख लेनी ही चाहिए; कौन जाने, आदमी अनूठा है, शायद कर दे! अब तक कितनों से ही पूछा, ऐसा जबाब भी किसी ने नहीं दिया। और यह जबाब भी बड़ा अजीब है। उसने कहा कि ले ही आना तू अशांति अपनी, शांत कर ही दूंगा, मगर अकेला मत आ जाना। तो किसी ने दावा किया है कि कर दूंगा शांत, ले आना। चलो देख लें। वह आया डरते-डरते, झिझकते - झिझकते। बोधिधर्म बैठा था वहां डंडा लिए अंधेरे में। उसने कहा. 'आ गये! अशांति ले आये?' सम्राट ने कहा: 'क्षमा करिये, यह भी कोई बात है! अशांति ले आये ! अब अशांति कोई चीज है?' 'तो क्या है अशांति?' बोधिधर्म ने पूछा। शांत करने के पहले आखिर मुझे पता भी तो होना चाहिए, किस चीज को शांत करूं! क्या है अशांति ?' उन्होंने कहा : 'सब मन का ऊहापोह है, मन का जाल है।' तो बोधिधर्म ने कहा. 'ठीक, तू बैठ जा, आंख बंद कर ले और भीतर अशांति को खोजने की कोशिश कर; जैसे ही मिल जाये, वहीं पकड़ ना और मुझसे कहना मिल गई। उसी वक्त शांत कर दूंगा।' और डंडा लिए वह बैठा है सामने । सम्राट आंख बंद कर ली। वह खोजने लगा। कोने-कातर देखने लगा। कहीं अशांति मिले न । वह जैसे-जैसे खोजने लगा, वैसे-वैसे शांत होने लगा। क्योंकि अशांति है कहां, मान्यता है! तुम खोज थोड़े ही पाओगे । सूरज उगने लगा, सुबह हो गई। घंटे बीत गये। सूरज की रोशनी में बू का चेहरा ऐसा खिल आया जैसे कमल हो । बोधिधर्म ने कहा : 'अब बहुत हो गया, आंख खोलो। मिलती हो तो कहो; न मिलती हो तो कहो।' वह चरणों पर झुक गया। उसने कहा कि नहीं मिलती। बहुत खोजता हूं कहीं नहीं मिलती और आश्चर्य कि खोजता अशांति को हूं और मैं शांत होता जा रहा हूं। यह क्या चमत्कार तुमने किया है बोधिधर्म ने कहा. 'एक बात और पूछनी है, तुम भीतर गये, इतनी खोज बीन की, तुम मिले?' उसने कहा कि वह भी कहीं कुछ मिलता नहीं। जैसे - जैसे खोज गहरी होती गई वैसे-वैसे पाया कि कुछ भी नहीं है। एक शून्य सन्नाटा है ! तो बोधिधर्म ने कहा. 'अब दुबारा यह सवाल मत उठाना। शांत कर दिया। और जब भी अशांति पकड़े, भीतर खोजना कहां है। और जब भी अहंकार पकड़े भीतर खोजना कहां है। खोजोगे, कभी न पाओगे। माने बैठे हो। ' तुम हो नहीं । तुम्हारा होना एक भ्रांति है। है तो परमात्मा ही । और तुम्हारी भ्रांति के कारण जो है, वह दिखाई नहीं पड़ रहा और जो नहीं है वह दिखाई पड़ रहा है। अब तुम्हारा प्रश्न मैं समझता हूं। यह भय उठता है। यह भय उठता है कि यह तो मामला

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