Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 412
________________ और उससे कहा कि जब गाड़ी में कोट रखा हो तो तू ऊपर का बटन तोड़ देना, फिर हम निपट लेंगे। वकील तो अपना कोट ले कर अंदर आ गये, कोट पहन कर अपना काम शुरू कर दिया। जब उलझन का मौका आया और उन्होंने बटन पर हाथ रखा, अचानक सब विचार बंद हो गये, पाया कि बटन नहीं है, घबरा गये! वह धक्का ऐसा लगा-पुरानी आदत, सदा की आदत-एकदम विचार रुक गये! तुमने देखा, चिंतित हो जाते हो, सिगरेट पीने लगते हो! राहत मिलती है, धुआ बाहर- भीतर करने लगे। पुरानी आदत है। उससे राहत मिलने का संबंध हो गया है। कम से कम मन दूसरी जगह उलझ गया। चिंतित आदमी से कहो, सिगरेट मत पीओ, सिगरेट पीना छोड़ दो-वह बड़ी मुश्किल में पड़ जाता है। क्योंकि सिगरेट पीना तो छोड़ दे _ लेकिन जब चिंता पकड़ती है तब क्या करे! शरीर और मन जुड़े हैं। तो योग में बहुत सी प्रक्रियाएं खोजी गई हैं कि विशेष आसन में बैठने से मन में विचार कम हो जाते हैं। तुम देखो, अगर तुम लेट कर पुस्तक पढ़ो तो तुम्हें याद न रहेगी क्योंकि लेट कर पढ़ने से जब तुम लेट कर पढ़ते हो तो खून की धारा मस्तिष्क में तीव्र होती है, तो जो भी स्मृति बनती है वह पुंछ जाती है। इसलिए लेट कर पढ़ने वाला याद नहीं कर पायेगा, भूल- भूल जायेगा। बैठ कर पढ़ोगे, ज्यादा याद रहेगा। अगर रीढ़ बिलकुल सीधी रख कर बैठ कर पढ़ा तो ज्यादा याद रहेगा, बहुत ज्यादा याद रहेगा। इसलिए जब भी तुम्हें कोई चीज याद रखनी होती है, तुम्हारी रीढ़ तत्क्षण सीधी हो जाती है। अनजाने! अगर कोई महत्वपूर्ण बात कही जा रही है, तुम रीढ़ सीधी करके सुनते हो। कोई साधारण बात कही जाती है, तुम फिर अपनी कुर्सी से टिक गये कि ठीक है। रही याद तो ठीक, न रही याद तो ठीक। महत्वपूर्ण बात को तुम अचानक रीढ़ सीधी करके सुनते हो क्योंकि शरीर की विशेष स्थितियों में मन की विशेष दशायें निर्मित होती हैं। तो योग ने बड़ी प्रक्रियायें खोजी। एक विशेष आसन में बैठ जाओ, पदयासन में, तो शरीर की विद्युत धारा वर्तुलाकार घूमने लगती है। रीढ़ बिलकुल सीधी हो तो शरीर पर गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव कम हो जाता है। श्वास बिलकुल शांत और धीमी हो तो विचार क्षीण हो जाते हैं। आंख नाक के नासाग्र पर अटकी हो तो आस-पास से कोई चीज निम्न नहीं देती। कोई गुजरे, निकले-कुछ पता नहीं चलता। ऐसी दशा का अगर निरंतर अभ्यास किया जाये तो धीरे - धीरे तुम पाओगे, एक तरह की जड़ समाधि पैदा हो गई। शरीर के माध्यम से तुमने मन पर एक तरह का कब्जा कर लिया। बाहर से तुमने भीतर को दबा दिया। अष्टावक्र कहते हैं. यह सच्ची समाधि नहीं है। यह चेष्टा से पैदा हुई समाधि है। भोग कर्म समाधि वा कुरु विज्ञ तथापि ते। तू चाहे भोग कर, चाहे कर्म कर, चाहे समाधि लगा.। चित्तं निरस्तसर्वाशमत्यर्थं रोचयिष्यति।

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